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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५ ) ३१. सातलाखसूत्र | सात लाख पृथ्वीकाय सचित्त मिट्टी, पाषाण आदि पृथ्वी के जीवों की योनि सात लाख हैं, सात लाख अकाय-- सचित्त भूमि का पानी, आकाश का पानी आदि अपकायिक जीवों की योनि सात लाख हैं, सात लाख ते काय -- अङ्गारा, भोभर, विजली, आदि अग्निकायिक जीवों की योनि सात लाख हैं, सात लाख वाउकाय -- उद्भ्रामक, महावात आदि वायुकायिक जीवों की योनि सात लाख हैं, दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय- -वृक्ष, फल, फूल, पत्र आदि प्रेत्येक वनस्पतिकायिक जीवों की योनि दश लाख हैं, चौद लाख साधारण वनस्पतिकाय-- जमीकन्द, कोमलफल, पत्र, नीलफूल, आदि साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की योनि चौदह लाख हैं, दो लाख बेइन्द्रिय--शंख, सीप, कोड़ा, कोड़ी, अलसिया आदि द्वीन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख हैं १ जिसके एक शरीर में एक ही जीवस्थान हो वह प्रत्येक वनस्पस्ति समझना । २ जिसके एक शरीर में अनन्त जीवस्थान हो उसको साधारण वनस्पति जानना | For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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