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(१६) उन्जिति पहु नेमिजिण-गिरनार तीर्थ के अधिष्ठाता
(नायक) हे श्रीनेमिनाथ प्रभो ! और जयउ वीर सच्चउरिमंडण-सांचोर (सत्यपुरी) के मंडन
हे महावीरस्वामिन् ! आप की जय हो, आप
जयवन्ता वतों भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय-बडौदा और सूरत के बीच में
नर्मदानदी के तट पर स्थित भरुअच्छ नगर
में हे मुनिव्रतस्वामिन् ! और मुहरि पास-मुहरीगाँव में हे पार्श्वनाथपभो ! आपकी
सदा जय हो दुहदुरिअखंडण-ये पांचों जिनेश्वर दुःख एवं खोटे
पापकर्मों का नाश करनेवाले हैं, अवरविदेहिं तित्थयरा--दूसरे भी जो महाविदेद क्षेत्र
में तीर्थङ्कर भगवान् हैं, तथा चिहुं दिसि विदिसि जि केवि--चारों दिशाओं में
और चार विदिशाओं में जो कोई तीआणागयसंपइय-- भूतकालीन, भविष्यत्कालीन और
वर्तमानकालीन, तीर्थङ्कर हुए, होंगे, एवं वंदु जिण सव्वे वि--उन सभी जिनेश्वरों को मैं वन्दन
करता हूँ ॥३॥
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