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(१५) जिणवराण विहरत लब्भइ-तीर्थङ्कर प्रभु विचरते हुए
पाये जाते हैं नवकोडिहिं केवलीण-जिनके साथ नव क्रोड़ सामान्य
केवलज्ञानी, कोडिसहस्स नव साहु गम्मइ--और नब हजार क्रोड
_____सामान्य ( ९० अर्ब ) साधु पाये जाते हैं संपइ जिणवर वीसमुणि-वर्तमान में श्रीसीमन्धरस्वामी
__ आदि वीस तीर्थङ्कर प्रभु हैं: जो 'बीस विहर
माण जिनेश्वर' कहाते हैं विहं कोडिहिं वरनाण--जिनके साथ दो क्रोड सामान्य
केवलज्ञानियों का और समणह कोडिसहस्स दुअ--दो हजार क्रोड ( २० अर्ब)
सामान्य मुनियों का परिवार है थुणिज्जइ निच्च विहाणि ।-उन सब की में प्रतिदिन
प्रातःकाल में स्तवना करता हूँ॥२॥ जयउ सामिय--हे स्वामिन् ! आप जयान्ता वतों,
आप की जय हो । जयउ सामिय रिसह सत्तुंजि- सिद्धाचलतीर्थ के नायक !
हे ऋषभदेवस्वामी ! आपकी जय हो
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