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(१०७)
नवकार
का काउस्सग करके पार कर दूसरी थुई कहना, और 'पुखरवरंदी०' सुअस्स भगवओ० बंदणवत्ति०, अन्नत्थ०' कह कर एक नवकार का काउस्सग्ग कर, पार कर 'नमोऽर्हत्सि ० ' बोल कर तीसरी थुइ कहना । फिर 'सिद्धाणं बुद्धाणं ० ' कह कर नीचे बैठ कर 'नमुत्थुणं० जावंति०, इच्छामि खमा०, जावंत०, इच्छामि खमा०, इच्छाकारेण, स्तवन भणुं ! इच्छं, नमोऽईत्, उवसग्गहरं० जय वीयराय' कहना । फिर खमासमण पूर्वक 'भगवान् हं' आदि चार को वन्दन करना ।
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फिर कटासण पर जिमना हाथ थाप कर 'अड्ढाज्जेसु० बोलना । फिर ईशान कोण तरफ मुख करके दो खमासमण देकर सीमन्धरस्वामी का चैत्यवन्दन कह कर ' जं किंचि० नमुत्थुणं०, जावंति०, इच्छामि खमा०, जावंत केवि०, इच्छामि खमा०, इच्छाकारेण ० स्तवन भणुं ? इच्छं, नमोऽर्हत् ० ' कह कर सीमन्धर प्रभु का स्तवन बोल कर 'जय वीयराय' कहना और खडे हो ' अरिहंत चेइ० अन्नत्थ० ' कह कर एक नवकार का कायोत्सर्ग करके पार कर' नमोऽर्हत०' कह कर सीमन्धर प्रभु की एक थुइ कहना | फिर सिद्धाचल की दिशा तरफ इसी प्रकार की विधि
१ खराब स्वप्न के काउस्सग्ग के सिवाय दूसरे सभी लोगस्स के कायोत्सर्गों में चंदेसु निम्मलयरा
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तक ही लोगस्स कहना चाहिये ।
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