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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1403] The commentary explains in Sanskrit and to illustrate the maxims, gives short stories, adding at the end of each story the morals. बुद्धी अचंडं भयए विणीयं कुद्धं कुसीलं भयए अकित्ती । संभिन्न चित्तं भयए अलच्छी सच्चे वियं संभाये सिरीए ।५।। चरति मित्ताणि नरं कयद्धं चयंति पावाइ मुणि जयंतं । चयंति शुक्काणि सराणि हंसा चयंति बुद्धी कुवियं मनुस्सं ॥६॥ आरोइ अच्छे कहिए विलावो असंपहारे कहिए विलावो । रिक्ख (कस? ) त्तचित्ते कहिए विलावो बहुकुसीसे कहिए विलावो ॥७॥ दुट्टाणिका दंडपरा हुवंति विज्जाहटा सतंपटा हुवंति । मुक्खा नरा कोवपरा हुवंति सुसाहुणो तत्तपरा हुवंति ।।८।। सोहा हवे उग्गओवस्स खंडी समाहिस्सोगोप समस्स सोहा । नाणं सुकाणं चरणस्स दोहा सीसस्स सोहा विणये पवित्ती ॥६॥ अभूसणो सोहेवं भयारी अकिंचणो सो हि दिक्खधारी। बुद्धी जुउसो हि रायमंति लज्जा जुया सो हि एक पत्ती ॥१०॥ अप्पा अरी हो अणवट्टियस्स अप्पो जसो सील मउ नरस्स । अप्पा दुरप्पा अणवट्ठियस्स अप्पा जियप्पा सरं गयीय ॥११॥ ण धम्म कज्जा परमच्छिकज्ज ण पाणहिंसा परमं अकज्ज । ण पेमरागा परमच्छबंधो ण वो हि लाहा परमच्छिलाभो ॥१२॥ ण सेवियव्वा पमरा परक्का ण सेवियव्वा पुरिसा अविज्जा। ण सेवियव्वा अहमाणि हीणा ण सेवियन्वा पिसूणा मणुस्सा ॥१३॥ जे धम्मिया ते खलु सेवियव्वा जे पण्डिता ते खलु पुच्छियव्वा । जे साधवो ते अभिनंदियव्वा जे निक्खमा ते पडिलाभिअव्वा ।।१४।। पुत्ताय सीसाय समं विभत्ता रिसीयदेवाय समं विभत्ता। मुक्खा तिरिक्खाय समं विभत्ता मुआदविद्दाय समं विभत्ता ॥१५॥ सव्वा कला धम्मकला जिणाई सव्वा कहा धम्मकहा जिणाई । सव्वं बलं धम्मबलं जिणाइं सव्वं सुहं धम्मसुहं जिणाई ।।१६।। जप पसत्तस्स धणस्स नाशो मंसे पसत्तस्स दयाइ नासो । मज्झे पसत्तस्स जसस्स नासो वेसा पसत्तस्य कुलस्स नासो ।।१७।। हिंसा पसत्तस्स सुधम्मनासो चोरीपसत्तस्स सरीरनासी।। ओहा परच्छीसु पसत्तयस्स सव्वस्स नाशो अहमागईय ।।१८।। धणं पविदस्स पछस्सक्खंडीइच्छा निरोहोय सुहो इयस्स । तारुण्णये इंदिय निग्गहोय चत्तारि एययिं सुक्कराई ॥१९॥ असासयं जीविय माहुलोए साहुजणोपदढें ॥२०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020283
Book TitleDescriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts Asiatic Society Vol 13 Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherAsiatic Society
Publication Year1987
Total Pages138
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue
File Size7 MB
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