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[ 136 ] सहीत ॥१८॥ अन्नत्थणा भोगेण १ सहस्सा सागारियागा आउटण पारणेण गुरु अभ्युठा• पारिठा० महत्तरै० सव्वसमाहि• एगासणई विश्रा सणिइ आगार पाठ सात प्रागार ए फल ठाणइ आउठण पसारणेणं एहालीणि जानवो अनत्थणा भोगेण ।
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देववंदनकभाष्य Devabamdanakabbāsya
Substance: Countrymade Paper ; Size : 108 in by 5, in ; Foll: 8 ; Five ILines of Text in a Page ; Character : Jaina Devanāgari; Appearance: fresh; ncomplete,
The Devabamdankabhäsya, a work in Prakfit on Jaina Āvašyaka. The Ms begins Fol 4b.
ते पुण णिडाल देसे लग्गा अते अलग्गत्ति । १७ पंच गोपणि वाउ घय पाढो होइ लोगमुद्दाए वंदण जिणमुद्दाए पणिहाण मुत्तिसुत्तीए १८ पणिहाणतियं चेइअ १ मुणिवंदन २ पथणा सरूव वा ३ मन १ वय २ काए गुत्त ३ सेसतिअत्थो अपयड्डुत्ति १६ सच्चित्तदव्वमुज्जण १ सच्चित्तमणू+ण २ मणेगत्तं ३ इगसाडि उत्तरा संग ४ अजली सिरसि The Ms begins Fol 11b.
पुष्फ ६ धुइ १० सिद्धा ११ वेधा १२ धुइ १३ नमुथ १४ जावंति १५ धय १६ जयवी १७ । ६२॥ सव्ववाहि विसुद्ध एंव जो ईदए सया देवे देविदवदमहियं परमपय पावइ लहसो ६३ The Commentary begins Fol 4a..
तेहा धवलीवि + निला. लगा डीयै इम कहे खकीय वीजा गच्छा तरइ कहा जे निलाडि लगाडवा नही ॥१७॥ पंचांग प्रणाम नउ करिवउ । स्तवनपाठशकस्तवादिक नउ कहिवउ हुवै योगमुद्राई करीनइ वदन कहीये अरिहंत चेइबाण इत्यादि जिनमुद्रायह प्रणिधान जावति चेई जावति केवि जयवीयराय ३ पमुक्तश्रुक्तीयइ ॥१८॥
प्रणिधान तिणिए जाणवा चैत्यवंदन १ मुनिवंदन २ प्रार्थनास्वरूप ३ एत्तिणि अधया .. मन १ वचनकायनु चैत्यवंदनाधिकारे एकसरि+वा+यै.
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