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SANBKRIT MANUSORITTI
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एकोऽहमविकलोऽहं
केवलसन्मात्रसारभूतोऽहम् ॥ ५ ॥ वेद्योऽहमागमान्तै
राधोऽहं सकलभुवनहृद्योऽहम् । विभुरहपनवद्योऽहं
शुभतरभावोऽहमप्रभेषोऽहम् ॥ ६ ॥ शुद्धोऽहमद्वयोऽहं
बुद्धो मुक्तोऽहमजुतात्माहम् । शोधितपरतत्त्वोऽहं
बोधानन्दैकमूर्तिरेवाहम् ॥ ७ ॥ शान्तोऽहमान्तरोऽहं
संततभातोऽहमन्तकारोऽहम् । शमितान्तत्रितयोऽहं
शाश्वतविज्ञानसमरसारमाहम् ॥ ८ ॥ अजरोहमव्ययोऽहं
निजमहमनिशं स्थितोऽहमचलोहम् । अवबोधैकरसोऽहं
कविवरसंसेव्यकेवलात्माहम् ॥९॥ निबैगुण्यपदोऽहं
निष्क्रियधामाह मप्रतयोऽहम् । निरवयवोऽहमजोऽहं
निर्मलनिर्वाणमूतिरेवाहम् ॥ १० ॥
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