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॥ स्वानुभूतिप्रकाशिका |
7770-72.
गौरीपतिपद भजन
SVĀNUBHŪTIPRAKĀŠIKĀ.
क्रकचविलूनैकविषयपाशोऽहम् ।
देशिकवर करुणोदिन
परजीवात्मैक्यतत्वबोधोऽहम् ॥ १ ॥
प्रशमित निजमायोऽहं
प्रत्यगभिन्नपरोऽहं
प्रगलितजगदीशजीवभेदोऽहम् ।
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समुदस्ता श्रमकोsहं
·
प्रविततसुखपूर्णसंविदेवाहम् ॥ २ ॥
अस्तमिताहन्तोऽहं
विश्वस्ताशेषविधिनिषेधोऽहम् ।
निस्तुलघूपवस्तुमात्रोऽहम् || ३ ||
साक्ष्यहंमनपेक्षोऽहं
सूक्ष्मोऽहमक्षरोऽहं
पक्षविपक्षादि भेदविधुरोऽहम् ।
कूटस्थ चेतनोऽहं
मोक्षानन्दै कसिन्धुरेवाहम् ॥ ४ ॥
कुक्षिस्थाने कलोककळनोऽहम् ।
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