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चिकित्सा-चन्द्रोदय । .... क्षय-ज्वर या जीर्ण-ज्वरको नाश करने में "जयमंगल-रस" एक ही है। उससे सब तरहके जीर्ण-ज्वर, धातुगत-ज्वर, विषम-ज्वर आदि आठों ज्वर नाश हो जाते हैं । क्षयमें भी वह खूब काम करता है, इसीसे यहाँ लिखते हैं:हिंगुलोत्थ पारा
४ माशे . शुद्ध गंधक
४ माशे शुद्ध सुहागा
माशे ताम्बा-भस्म
४ माशे बंग-भस्म
४ माशे सोनामक्खी-भस्म
४ माशे सैंधानोन
४ माशे कालीमिर्चका चूर्ण
४ माशे सोना-भस्म
४ माशे कान्तलोह-भस्म चाँदी-भस्म
४ माशे इन सबको एकत्र मिलाकर, एक दिन “धतूरेके रस में खरल करो। दूसरे दिन “हारसिंगारके रस" में खरल करो। तीसरे दिन “दशमूलके काढ़े के साथ खरल करो और चौथे दिन “चिरायतेके काढ़े" के साथ खरल करो और रत्ती-रत्ती-भरकी गोलियाँ बना लो।
सफेद जीरेके चूर्ण और शहदमें एक रत्ती यह रस मिलाकर चाटनेसे समस्त ज्वरोंको नाश करता है । यह जीर्ण-ज्वर या क्षय-ज्वरकी प्रधान औषधि है।
४ माशे
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