________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- "चिकित्सा-चन्द्रोदय । आते न हों, तिल्ली, पीलिया, अतिसार, संग्रहणी और छातीमें दर्द वगैरः लक्षण हों तब आप :
तालीसादि चूर्ण-- तीनसे ६ माशे तक, नीचेके अनुपानोंके साथ, समझ-बूझकर दीजियेः
(१) शर्बत अनार, (२) शर्बत बनफशा, (३) मिश्रीकी चाशनी, (४) मिश्रीका शर्बत, (५) कच्चा दूध, (६) बासी जल, (७) शहद ।
___ कर्पूरादि चूर्ण । अगर रोगीको स्वर-भंग, सूखी ओकारी, खाँसी, श्वास, गोला, बवासीर, दाह, कंठमें छाले या कोई और तकलीफ हो, तब “क:रादि चूर्ण" २ से ३ माशे तक, नीचेके अनुपानोंके साथ, जरुरत होनेसे, रोगके उपद्रव रोकनेको देना चाहिये; यानी मुख्य दवाओंके बीचमें, उपद्रव शान्त करनेको, किसी मुनासिब वक्तपर, दे सकते हो।
अनुपानः-- (१) अर्क गुलाब, (२) शहद, (३) जल,
(४) केलेके खंभका जल ।
अश्वगन्धादि चूर्ण । अगर उरःक्षतके कारण कोखमें दर्द हो, पेटमें शूल चलते हों, मन्दाग्नि, क्षीणता आदि लक्षण क्षय-रोगीमें हों, तो आप "अश्वगन्धादि चूर्ण" २ से ३ माशे तक, नीचे लिखे अनुपानोंके साथ, सवेरेशाम दीजिये।
(१) शहद या गरम जलके साथ-वातज-क्षयमें। .. (२) बकरीके घीके साथ-पित्तज-क्षयमें । ' (३) मधुके साथ--कफज-क्षयमें ।
For Private and Personal Use Only