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चिकित्सा-चन्द्रोदय । चौथाई जल रहे उतार लो । उस काढ़ेको एक मजबूत मिट्टी या चीनीके बर्तनमें भर दो।
फिर उसमें १० सेर एक सालका पुराना गुड़ डाल दो। ६४ तोले धायके फूल कूटकर डाल दो और बायबिड़ङ्ग, पीपर, दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेशर और कालीमिर्च हरेक चार-चार तोले भी डाल दो। इसके बाद उसका मुँह बन्दकर सन्धोंपर कपरौटी करके जमीनमें १ महीने तक गाड़ रखो। ____एक महीने बाद, छानकर काममें लाओ। यह उत्तम "द्राक्षासव" है। अगर इसे और बढ़िया करना हो, तो इसका भभके द्वारा अर्क खींच लो। अगर इसे कम मात्रामें ज़ियादा गुणकारी और बहुत दिन तक न बिगड़नेवाला बनाना चाहो, तो इसमें हर सौ तोलेमें एक तोले रैक्टीफाइड स्पिरिट मिला देना ।
सेवन-विधि । ___ अगर स्पिरिट न मिलावें, तो इसकी मात्रा आधा तोलेसे २ तोले तक हो सकती है, पर स्पिरिट मिलानेपर इसकी मात्रा १॥ माशेसे ३ माशे तक है । इसे शीतल जलमें मिलाकर पीना चाहिये।
(२८) हमने उधर सितोपलादि चूर्ण, 'तालीसादि चूर्ण और लवंगादि चूर्ण लिखे हैं। वहाँ हमने उनके बनानेकी विधि और गुण लिखे हैं, पर यह नहीं लिखा कि रोगकी किस-किस अवस्थामें कौन-सा चूर्ण देना चाहिये, अतः यहाँ लिखते हैं:
सितोपलादि चूर्ण । अगर क्षय या जीर्णज्वर रोगीको खाँसी, श्वास, हाथ-पैरोंके तलवोंमें जलन या सारे शरीरमें जलन हो अथवा अरुचि, मन्दाग्नि, पसलीका दर्द, कन्धोंकी जलन, कन्धों का दर्द, जीभका कड़ापन, सिरमें रोग आदि हों, तो सितोपलादि चूर्ण १॥ माशेसे ३ माशे तक
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