________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा । ६४६ बन्द कर दो और हाँडीको चूल्हेपर चढ़ा १२ घण्टों तक बराबर आग लगने दो। इसके बाद उतारकर शीतल कर लो। इसकी मात्रा २ रत्तीकी है । अनुपान गोलमिर्च और घी अथवा पीपलोंका चूर्ण और घी । इसके सेवन करनेसे राजयक्ष्मा, ज्वर, अरुचि, वमन, स्वर-भंग
और खाँसी प्रभृति रोग आराम होते हैं। ___ यक्ष्मा, तपेदिक या जीर्णज्वरपर स्वर्ण मालतीबसन्त सर्वोत्तम दवा है। उसकी विधि हमने दूसरे भागमें लिखी है, पर यहाँ फिर लिखते हैं:सुवर्ण भस्म
१ तोले मोती गुलाबजल में घुटे २ ,, शिंगरफ शुद्ध रूमी कालीमिर्च धुली-छनी
जस्ता-भस्म पहले सोनेकी भस्म और शिंगरफको खरल में डालकर ६ घण्टों तक घोटो । फिर इसमें मोतीकी खाक, मिर्च और जस्ता-भस्म भी मिला दो और तीन घण्टे खरल करो। इसके भी बाद, इसमें गायका लूनी घी इतना डालो कि मसाला खूब चिकना हो जावे । अन्दाजन ६ तोले घी काफी होगा। घी मिलाकर, इसमें कागजी नीबुओंका रस डालते जाओ और खरल करते रहो, जब तक घी की चिकनाई क़तई न चली जावे, बराबर खरल करते रहो । चाहे जितने दिन खरल करनी पड़े; बिना चिकनाई गये, मालती बसन्त कामका न होगा। कोई-कोई इसे ४६ दिन या सात हफ्ते तक खरल करनेकी राय देते हैं । कहते हैं, ७ हफ्ते घोटनेसे यह रस बहुत ही बढ़िया बनता है। अगर इसपर खूब परिश्रम किया जावे, तो बेशक हुक्मी दवा बने ।
नोट-अगर सोना भस्म न हो, तो सोनेके वर्क मिला सकते हो, पर सोनेके वर्क जाँचकर ख़रीदना । अाजकल इनमें कपट-व्यवहार होने लग गया है । अगर सुवर्ण-भस्मकी जगह सोने के वर्क मिलायो, तो सोनेके वर्क और
८२
For Private and Personal Use Only