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स्थावर विषोंकी सामान्य चिकित्सा। - (६) बकरीकी मैंगनी जलाकर खाने और लेप करनेसे अनेक प्रकारके विष नष्ट हो जाते हैं ।
(१०) मुर्गे की बीट पानीमें मिलाकर पिलाते ही, कय होकर, विष निकल जाता है।
(११) कालीमिर्च, नीमके पत्ते और सेंधानोन तथा शहद और घी-इन सबको मिलाकर पीनेसे स्थावर और जंगम दोनों तरहके विष शान्त हो जाते हैं। - (१२) शुद्ध बच्छनाभ विष, सुहागा, कालीमिर्च और शुद्ध नीलाथोथा - इन चारोंको बराबर-बराबर लेकर महीन पीस लो। फिर खरलमें डाल, ऊपरसे "बन्दाल"का रस दे-देकर घोटो। जब घुट जाय, चार-चार माशेकी गोलियाँ बना लो। इन गोलियोंको मनुष्यके मूत्र या गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे कन्दादिके विषकी पीड़ा तथा
और ज़हरोंकी पीड़ा शान्त हो जाती है। इतना ही नहीं, घोर जहरी काले साँपका जहर भी इन गोलियों के सेवन करनेसे उतर जाता है। यह नुसख: साँपके जहरपर परीक्षित है।
नोट-विष खाये हुए रोगीको शंतल स्थानमें रखने, शीतल सेक और शीतल उपचार करनेसे विर-वेग निश्चय हो शान्त हो जाते हैं। कहा है:--
शीतोपचारा वा सेकाः शीताः शीतस्थलस्थितिः ।
विषार्त विषवेगानां शान्त्यै स्युरमृतं यथा ॥ .. (१३) कड़वे परवल घिसकर पिलानेसे तय होती हैं और विष निकल जाता है। : (१४) कड़वी तूम्बीके पत्ते या जड़ पानीमें पीसकर पिलानेसे वमन होकर विष उतर जाता है। परीक्षित है। - (१५) कड़वी घिया तोरई की बेलकी जड़ अथवा पत्तोंका काढ़ा "शहद" मिलाकर पिलानेसे समस्त विष नष्ट हो जाते हैं। परीक्षित है।
(१६) कड़वी तोरई के काढ़ेमें घी डालकर पीनेसे वमन होती और विष उतर जाता है। परीक्षित है।
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