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राजयक्ष्मा और उराक्षतकी चिकित्सा । ६३३ (१४) चव्य, सोंठ, मिर्च, पीपर और बायबिडङ्ग-इन सबका चूर्ण घी और शहद में मिलाकर चाटनेसे क्षय-रोग निश्चय ही नाश हो जाता है। - (१५) त्रिकुटा, त्रिफला, शतावर, खिरेंटी और कंघी-इन सबके पिसे-छने चूर्ण में "लोह-भस्म" मिलाकर सेवन करनेसे अत्यन्त उग्र यक्ष्मा, उरःक्षत, कंठरोग, बाहुस्तम्भ और अर्दित रोग नाश हो जाते हैं ।
(१६) परेवा पक्षीके मांसको धूपमें, नियत समयपर, सुखाकर, शहद और घीमें मिलाकर, चाटनेसे अत्यन्त उग्र यक्ष्मा भी नाश हो जाता है।
(१७ ) असगन्ध और पीपलके चूर्ण में शहद, घी अरौ मिश्री मिलाकर चाटनेसे क्षय-रोग चला जाता है।
(१८) मिश्री, शहद और घी मिलाकर चाटनेसे क्षय नष्ट हो जाता है। ना-बराबर घी और शहद मिलाकर चाटने और ऊपरसे दूध पीनेसे ज्ञय-रोग चला जाता है । परीक्षित है। ... (१६) सोया, तगर, कूट, मुलेठी और देवदारु,-इनको धीमें पीसकर पीठ, पसली, कन्धे और छातीपर लेप करनेसे इन स्थानोंका दर्द मिट जाता है।
(२०) कबूतरका मांस बकरीके दूधके साथ खानेसे यक्ष्मा नाश हो जाता है । कहा हैसंशोषितं सूर्यकरैर्हि मांसं पारावतं यः प्रतिघसमत्ति । सर्पिमधुभ्यां विलिहन्नरो वा निहन्ति यक्ष्माणमतिप्रगल्भम् ॥
कबूतरका मांस, सूरजकी किरणोंसे सुखाकर, हर दिन खानेसे अथवा उसमें घी और शहद मिलाकर चाटनेसे अत्यन्त बढ़ा हुआ राजयक्ष्मा भी नाश हो जाता है । परीक्षित है।
(२१) दिनमें कई दफा दो-दो तोले अंगूरकी शराब, महुएकी शराक या मुनक्केकी शराब पीनेसे यक्ष्मा नाश हो जाता है।
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