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चिकित्सा-चन्द्रोदय। सूखता है । हाथोंकी हथेली और पैरोंके तलबोंमें जलन होती है। कभी-कभी कन्धोंके दर्दके मारे रोगी बेचैन-सा हो जाता है । या तो नींद आती ही नहीं या बहुत ज़ियादा आती है । पहले तो जीभ सफेद दीखती है, पर पीछे लाल नज़र आती है । आँखें भीतरको घुस जाती हैं। उनका रंग सफेद हो जाता है । होठ काले या नीले हो जाते हैं। चेहरा लाल हो जाता है। छातीमें सुई चुभानेकी-सी पीड़ा होती है । रोगी बड़ी तकलीफसे छातीको पकड़कर खाँसता है । बड़ी मुश्किलसे थोड़ा झागदार और चेपदार कफ सुर्जी-माइल निकलता है।
प्र०--क्षयके लक्षण विशेष रूपसे कहिये।
उ०--रोग होते ही जुकाम होता है, फिर सूखी खाँसी आने लगती है, यद्यपि उस समय वह पैदा ही होती है, अपने ज़ोरमें नहीं होती; तो भी उसके मारे रोगीको बड़ी तकलीफ होती है। रोगीके मुखसे पतला-पतला और चिकना-चिकना बलगम निकलने लगता है । इसके भी बाद, उस कफमें खून मिलकर आने लगता है, इसलिए वह स्याहीमाइल होता है । इसके भी बाद, कभी भूरी, कभी पीली और कभी हरी पीप आने लगती है। बहुत दिन बीतनेपर खून-ही- खून ज़ियादा आने लगता है । उसमें घोर दुर्गन्ध होती है। पीपकी बदबू ऐसी होती है, जैसी कि हड्डीके जलनेकी होती है । जिनकी पीप बहुत ही जियादा सड़ जाती है या जिनका जुकाम रोगके शुरूमें बहुत दिन तक बना रहता है, उनको कफ थूकनेके समय खुद ही बदबू मालूम होती है ।
जो बदबूदार खून कफके साथ आता है, वह पानीमें डालनेसे डब जाता है। रोगीके कफकी परीक्षा, पानीसे गिलास भरकर, उसमें कफ डालकर की जाती है । हकीम लोग जलके भरे गिलासमें कफको डालते हैं। उसे बिना हिलाये-डुलाये, ३।४ घण्टे बाद देखते हैं। अगर कफ पानीपर तैरता रहता है, तो रोगको साध्य मानते हैं; डब जाता है, तो असाध्य मानते हैं। अगर इस तरह जलकी परीक्षासे निर्णय नहीं होता, तो जलते हुए कोयलेपर कफको डालते हैं। अगर
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