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चिकित्सा-चन्द्रोदय । है । अगर यकृतमें दर्द हो, तो उसपर तारपीनका तेल मलकर गरम जलसे सेक करना चाहिये अथवा गो-मूत्र को गरम करके और बोतलमें भरकर सेक करना चाहिये अथवा गरम जल या गो-मूत्र में फलालेनका टुकड़ा भिगोकर सेक करना चाहिये । हमने यहाँ दो-चार बातें इशारतन लिख दी हैं। यकृतके निदान-लक्षण और चिकित्सा हमने सातवें भागमें लिखे हैं। - (५) यक्ष्मा-रोग नाशार्थ कोई खास दवा, जैसे लवंगादि चूर्ण, सितोपलादि चूर्ण, च्यवनप्राश अवलेह, द्राक्षारिष्ट, जातीफलादि चूर्ण, मृगांक रस, प्रभृति उत्तमोत्तम रसों या दवाओं में से कोई देनी चाहिये, पर साथ ही ऊपरके उपद्रव जैसे-कन्धोंका दर्द और स्वरभङ्ग आदिके ऊपरी उपाय भी करने चाहिए । इस तरह करनेसे रोगीको उतना ज़ियादा कष्ट नहीं होता । जैसे,—रोगी बहुतही कमजोर हो तो उसे घी, दूध, शहद, कालीमिर्च और मिश्रीका पना बनाकर, किसी दवाके बाद, सवेरे-शाम थोड़ा-थोड़ा पिलाना चाहिये । अथवा नौनी घीमें मिश्री और शहद मिलाकर खिलाना चाहिये । बकरीका दूध पिलाना चाहिये। बकरीके घीमें ज़रा-सी चीनी मिलाकर पिलाना चाहिये । अगर पच सके तो बकरीका मांस खिलाना चाहिये । यक्ष्मा-रोगीको बकरी और हिरन बहुत हितकारी हैं, इसीसे वैद्य लोग क्षय-रोगीके पलँगके पास हिरन या बकरीको बाँध रखते हैं । "भावप्रकाश"में लिखा है:
छागमांसं पयश्छागं छागं सर्पिः सनागरम् ।
छागोपसेवी शयनं छागमध्येतु यक्ष्मनुत् ।। बकरीका मांस खाना, बकरीका दूध पीना, सोंठ मिलाकर बकरीका घी खाना, बकरोंकी सेवा करना और बकरे-बकरियों में सोना-- यक्ष्मा-रोगीको हित है।
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