________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजयक्ष्मा और उराक्षतकी चिकित्सा । ५७६ समझिये,- उस दशामें पहले रसका क्षय होता है, रसके क्षयसे मांसका क्षय होता है, मांससे मेदका, मेदसे अस्थिका, अस्थिसे मज्जाका
और मज्जासे वीर्यका क्षय होता है। इस दशामें पहले वीर्यका, फिर मज्जाका, फिर अस्थिका, फिर मेद और मांस आदिका क्षय होता है।
क्षयके पूर्व रूप। (क्षय होनेसे पहले नजर आनेवाले चिह्न)
जब किसीको क्षय-रोग होनेवाला होता है, तब पहले उसमें नीचे लिखे हुए चिह्न या लक्षण नज़र आते हैं:___ श्वास-रोग होता है, शरीर में दर्द होता है, कफ गिरता है, तालू सूखता है, कय होती है, अग्नि मन्दी हो जाती है, नशा-सा बना रहता है, नाकसे पानी गिरता है, खाँसी और अधिक नींद आती है । तात्पर्य यह है, कि जिनको क्षय होनेवाला होता है, उनमें क्षय होनेसे पहले उपरोक्त शिकायतें देखनेमें आती हैं।
इन लक्षणोंके सिवाय क्षयके पोंमें फँसनेवाले मनुष्यका मन मांस और मैथुनपर अधिक चलता है और उसकी आँखें सफ़ेद हो जाती हैं।
वाग्भट्ट महाराज कहते हैं, जिसे क्षय होनेवाला होता है, उसे पीनस या जुकाम होता है, छींकें बहुत आती हैं, उसका मुंह मीठामीठा रहता है, जठराग्नि मन्दी हो जाती है, शरीर शिथिल और गिरापड़ा-सा हो जाता है, मुँह थूक या पानीसे भर-भर आता है, वमन होती हैं, खानेको दिल नहीं चाहता है। खाने-पीनेपर बल कम होता जाता है, मुँह और पैरोंपर वरम या सूजन चढ़ आती है और दोनों नेत्र सफेद हो जाते हैं। इनके सिवा, क्षय-रोगी खाने-पीनेके शुद्धसाफ बर्तनोंको अशुद्ध समझता है, खाने-पीनेके पदार्थों में उसे मक्खी, तिनका या बाल प्रभृति दीखते हैं, अपने हाथोंको देखा करता है, दोनों भुजाओंका प्रमाण जानना चाहता है, सुन्दर शरीर देखकर भी
For Private and Personal Use Only