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चिकित्सा-चन्द्रोदय। वाली सफाई करनेके लिये इस चूंघटको खोलती है, तब वे रोते-चीखते हैं और कभी-कभी पेशाब करते समय किंच्छते और चिल्लाते हैं।
इस मणि या सुपारीके पीछे गोल और कुछ गहरी-सी जगह होती है। वहाँ एक प्रकारकी बदबूदार चिकनी चीज़ जमा हो जाती है। यह चीज़ वहीं बनती रहती है। जब यह जियादा बनती है या सुपारी बहुत दिनों तक धोई नहीं जाती, तब यह बहुत इकट्ठी हो जाती है और वहाँसे चलकर सुपारीपर भी आ जाती है। जो मूर्ख लिङ्गको रोज नहीं धोते, उनकी सुपारी या उसकी गर्दन में इस चिकने पदार्थ से फुन्सियाँ हो जाती हैं । बहुत बार लिङ्गार्श या उपदंश रोग भी हो जाताहै । "भावप्रकाश में लिखा है:
हस्ताभिघातानखदन्तघातादधावनादत्युपसेवनाद्वा । योनिप्रदोषाच्चभवन्ति शिश्ने पञ्चोपदंशा विविधापचारैः ॥
हाथकी चोट लगने, नाखून या दाँतोंसे घाव हो जाने, लिङ्गको न धोने, पशु प्रभृतिके साथ मैथुन करने और बालवाली या रोगवाली स्त्रीसे मैथुन करनेसे पाँच तरहका उपदंश या गरमी रोग हो जाता है । लिंगार्श होनेसे सुपारीके नीचे मुर्गेकी चोटीके समान फुन्सियाँ हो जाती हैं।
शिश्न-शरीर ।
सुपारी और लिङ्गकी जड़के बीचमें जो लिङ्गका हिस्सा है, उसे लिङ्गका शरीर कहते हैं । लिङ्गका कुछ भाग फोतों या अण्ड-कोषोंके नीचे ढका रहता है । इसे ही लिङ्गकी जड़ या शिश्न-मूल कहते हैं। लिङ्गका पिछला हिस्सा मूत्राशय या वस्तिसे मिला रहता है ।
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