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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (१२) पीपर और बचको पानीमें पीसकर और रेंडीके तेल में मिला कर, स्त्रीकी नाभिपर लेप कर देनेसे बच्चा सुखसे होता है। परीक्षित है।
(१३) बिजौरेकी जड़ और मुलेठीको घीमें पीसकर पीनेसे बच्चा सुखसे पैदा होता है । परीक्षित है । कोई-कोई इसमें शहद भी मिलाते हैं । “वैद्यजीवन में लिखा है:मध्वाज्ययष्टीमधुलुगमूलं निपीय सूते सुमुखी सुखेन । सतंडुलांभः सितधान्यकल्काद्रुतंवमिर्गच्छति गर्भिणीनाम् ॥
जिस स्त्रोको बच्चा जनते समय अधिक कष्ट हो, उसे मुलेठी और बिजौरेकी जड़-इन दोनोंको पानीमें पीस-घोल और गरम करके पिलानेसे बालक सुखसे हो जाता है। जिस गर्भवतीको कय ज़ियादा होती हों, उसे धनियेका चूर्ण खाकर ऊपरसे मिश्री-मिला चाँवलोंका पानी पीना चाहिये ।
(१४) आदमीके बहुतसे बाल जलाकर राख कर लो। फिर उस राखको गुलाब-जलमें मिलाकर बच्चा जननेवालीके सिरपर मलो । सुखसे बालक हो पड़ेगा।
(१५) लाल कपड़ेमें थोड़ा नमक बाँधकर, बच्चा जननेवालीके बायें हाथकी तरफ़ लटका देनेसे, बिना विशेष कष्टके सहजमें बच्चा हो पड़ता है।
(१६) अगर बच्चा जननेवालीको भारी कष्ट हो, तो थोड़ी-सी साँपकी काँचली उसके चूतड़ोंपर बाँध दो और उसकी योनिमें थोड़ी-सी काँचलीकी धूनी भी दे दो। परमात्मा चाहेगा तो सहजमें बालक हो जायगा; कुछ भी तकलीफ न होगी।
(१७) बारहसिंगेका सींग स्त्रीके स्तनपर बाँध देनेसे भी बच्चा सुखसे हो जाता है।
(१८) गिद्धका पंख बच्चा जननेवालीके पाँवके नीचे रख देनेसे बच्चा बड़ी आसानीसे हो जाता है ।
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