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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-गर्भिणी-चिकित्सा । ४६० नोट-इस मासमें मैथुन क़तई त्याग देना चाहिये । क्योंकि इस महीने में मैथुन करनेसे गर्भ निश्चय ही गिर जाता या अन्धा, लूला, लँगड़ा हो जाता है।
नवाँ महीना। नवें महीने में- मुलेठी, सफेद सारिवा, काला सारिवा, असगन्ध और लाल पत्तोंका जवासा - इनको शीतल जलमें पीसकर, एक तोले कल्क लेकर चार तोले दूधमें घोलकर पिलाओ।
दसवाँ महीना। दसवें महीनेमें--सोंठ और असगन्धको शीतल जलमें पीसकर फिर उसमेंसे एक तोले कल्क लेकर, १२८ तोले जल और बत्तीस तोले दूधमें डालकर पकाओ । जब दूध-मात्र रह जाय, छानकर गर्भिणीको पिला दो।
अथवा सोंठको दूधमें औटाकर शीतल करके पिलाओ।
अथवा सोंठ, मुलेठी और देवदारुको दूधमें औटाकर पिलाओ। अथका इन तीनोंके एक तोले कल्कको चार तोले दुधमें घोलकर पिलाओ ।
ग्यारहवाँ महीना। ग्यारहवें महीनेमें-खिरनीके फल, कमल, लजवन्तीकी जड़ और हरड़--इनको शीतल जलमें पीसकर, फिर एक तोले कल्कको दूधमें घोलकर पिलाओ। इससे गर्भिणीका शूल शान्त हो जाता है।
बारहवाँ महीना। बारहवें महीनेमें मिश्री, विदारीकन्द, काकोली और कमलनाल इनको सिलपर पीसकर, इसमेंसे एक तोला कल्क पीनेसे शूल मिटता, घोर पीड़ा शान्त होती और गर्भ पुष्ट होता है।
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