________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.
श्या
स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज। ४४६ श्यानाकको हिन्दीमें सोनापाठा, अरलू या टेंटू कहते हैं। बँगलामें शोनापाता या सोनालू कहते हैं।
तीसरा फलघृत । . .. मोथा, हल्दी, दारुहल्दी, कुटकी, इन्द्रायण, कूट, पीपल, देवदारु, कमल, काकोली, क्षीर-काकोली, त्रिफला, बायबिडङ्ग, मेदा, महामेदा, सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, रास्ना, प्रियंगू, दन्ती, मुलहटी, अजमोद, बच, चमेलीके फूल, दोनों तरहके सारिवा, कायफल, बंसलोचन, मिश्री और हींग--इन तीस दवाओंको एक-एक तोले लेकर, पीस-कूटकर छान लो। फिर सिल पर रख, जलके साथ भाँगकी तरह पीस लो। यही कल्क है। ___फिर एक सेर घी और चार सेर गायका दूध तथा ऊपरकी लुगदी या कल्कको मिलाकर खूब मथो और चूल्हेपर रखकर, आरने उपलोंकी आगसे पकाओ। जब घी तैयार हो जाय, दूध जल जाय, घीको उतारकर छान लो । ___ मात्रा--चार तोलेकी है। पर बलाबल अनुसार कम या इतनी ही लेनी चाहिये।
रोगनाश-इस घीको अगर पुरुष पीवे तो औरतोंमें साँड़ हो जाय और बाँझ पीवे तो पुत्र जने। जिन स्त्रियोंको गर्भ तो रह जाता है पर पेट बढ़ता नहीं, जिनके कन्या-ही-कन्या होती हैं, जिनके एक सन्तान होकर फिर नहीं होती, जिनकी सन्तान होकर मर जाती है या जिनके मरे हुए बच्चे होते हैं वे सब इस घीके पीनेसे रूपवान, बलवान और आयुष्मान् पुत्र जनती हैं। इस घीको भारद्वाज मुनिने निकाला था । परीक्षित है । ( यह घी हम पृष्ठ ४३३ में भी लिख आये हैं । )
फलकल्याण घृत । मँजीठ, मुलेठी, कूट, त्रिफला, खाँड़, बरियारेकी जड़, मेदा, बिदारीकन्द, असगन्ध, अजमोद, हल्दी, दारुहल्दी, हींग, कुटकी,
For Private and Personal Use Only