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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ ... चिकित्सा-चन्द्रोदय । अथवा साद फूलका बरियारा, सफ़द कटेहलोकी जड़, ओंगा, जीवक, ऋषभक और लक्ष्मणा ये सभी औषधियाँ बाँझको पुत्र देनेवाली प्रसिद्ध हैं । पर इन सबमें "लक्ष्मणा" सबकी रानी है । अगर लक्ष्मणा न मिले, तो सफ़ द फलकी कटेहली और बड़की कोंपल प्रभूतिसे काम अवश्य लेना चाहिये । कटेहलीका चमत्कार हमने कई बार देखा है । ___ गर्भ-पुष्टिकर उपाय उस समयके लिये हैं, जब मालूम हो जाय कि गर्भ रह गया। अनेक चतुरा रमणियाँ तो गर्भ रहने की उसी क्षण कह देती हैं, कि हमें गर्भ रह गया, पर सबमें यह सामर्थ्य नहीं होती, अतः हम गर्भ रहनेकी पहचान नीचे लिखते हैं। गर्भ रहने से स्त्रीमें ये लक्षण पाये जाते हैं : (१) दिल खुश हो जाता है। (२) शरीरमें कुछ भारीपन होता है। (३) कूख फड़कती है। (४) गर्भाशयमें गया हुआ मर्दका वीर्य बहकर बाहर नहीं आता। (५) रजोधर्मके चौथे दिन भी जो ज़रा-ज़रा खून या भूदरा-भूदरा लाललाल पानी-सा गिरता है, वह नहीं गिरता--बन्द हो जाता है। (६) कलेजा धक-धक करता है। (७)प्यास लगती है। (८) भोजनकी इच्छा नहीं होती। (१) रोएँ खड़े होते हैं। (१०) तन्द्रा या ॐघाई आती और सुस्ती घेरती है। नाकमें लक्ष्मणा प्रभतिका रस डालना ही पुसवन कहलाता है। अगर कोई यह कहे, कि जब गर्भ रहेगा, तब होनहार होगा तो, बच्चा होगा ही । पुसवनसे क्या लाभ ? उसपर महर्षि वाग्भट्ट कहते हैं: बली पुरुषकारो हि दैवमप्यतिवर्त्तते । बलवान् पुरुषार्थ दैव या प्रारब्धको भी उल्लङ्घन करता है । मतलब यह, पुरुषार्थके आगे प्रारब्ध या तकदीर भी हेच हो जाती है । हमारा अपना अनुभव । हमने जिस स्त्रीको किसी योनिरोगसे पीड़ित पाया उसे पहले पृष्ठ ४३७ का “फलघृत" सेवन कराकर आरोग्य किया । जब वह योनिरोगसे छुटकारा पा गई, तब पृष्ठ ४३३ के नं० ३१ का फलघृत सेवन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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