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. चिकित्सा-चन्द्रोदय । हों या मरे हुए बच्चे होते हों, उन्हें इस घृतके सेवन करनेसे रूपवान, बलवान और आयुष्मान पुत्र होता है। यह “फलघृत" भारद्वाज मुनिने कहा है। परीक्षित है। - नोट---इस नुसख में उस गायका घी लेना चाहिये, जो एक रङ्गकी हो और जिसका बछड़ा जीता हो । इसे पारने--जंगली कण्डोंकी श्रागसे ही पकाना चाहिये । वैद्यविनोद-कर्ता लिखते हैं, इसमें लक्ष्मणाकी जड़ भी ज़रूर डालनी चाहिये । यद्यपि और भी अनेक दवाओंमें पुत्र देनेकी ताक़त है, पर लक्ष्मणा उन सबमें सिरमौर है । शास्त्रोंमें लिखा है:
कथिता पुत्रदाऽवश्यं लक्ष्मणा मुनिपुंगवैः । लक्ष्मणाकं तु या सेवेद्वन्ध्यापि लभतेसुतम् ।। लक्ष्मणा मधुराशीता स्त्रीवन्ध्यात्व विनाशिनी ।
रसायनकरी बल्या त्रिदोषशमनी परा ॥ लक्ष्मणा मुनियोंने अवश्य पुत्र देनेवाली कही है। लक्ष्मणाके अर्कको अगर बाँझ भी सेवन करती है, तो पुत्र होता है । लक्ष्मणा-कन्द मधुर, शीतल, स्त्रीके बाँझपनको नाश करनेवाला, रसायन और बलकारक है।
लक्ष्मणाकी बेल पुत्रकके जैसी होती है। इसके पत्तोंपर खूनकी-सी लाललाल छोटी-छोटी बूंदें होती हैं। इसकी प्राकृति और गन्ध बकरेके समान होती है । लक्ष्मणा, और पुत्र-जननी--ये दो लक्ष्मणाके संस्कृत नाम हैं। इनके सिवा और भी बहुतसे संस्कृत नाम हैं। जैसे,-नागपत्री, पुत्रदा, पुत्रकन्दा, नागिनी और नागपुत्री वगरः वगरः। ___ एक ग्रन्थमें लिखा है, लक्ष्मणा बहुत कम मिलती है। यह कहीं-कहीं पहाड़ोंमें मिलती है। इसके पत्ते चौड़े होते हैं। उनपर चन्दनकी-सी लाललाल बूंदें होती हैं। इसके नीचे सफेद रङ्गका कन्द होता है। ___ कहते हैं, लक्ष्मणा गयाके पहाड़ोंपर मिलती है। कोई कहते हैं, हिमालय और उसकी शाखाओंपर अवश्य मिलती है। लक्ष्मणाका वृत्त वन-तुलसीके समान लम्बा-चौड़ा और सूरत-शकलमें भी वैसा ही होता है । वन-तुलसीके पत्तोंपर खूनकी-सी बूंदें नहीं होती, पर लक्ष्मणापर छोटी-छोटी खूनकी-सी बूंदें होती हैं।
शरद् ऋतुमें, लक्ष्मणामें फल-फूल आते हैं। उसी मौसममें यानी क्वार कातिकमें, शनिवारके दिन, साँझके समय, स्नान करके, खैरकी लकड़ीकी चार मेखें उसके चारों ओर गाड़कर, उसकी. धूप-दीप आदिसे पूजा करके, वैद्य उसे
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