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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (६) असगन्धको कूट-पीसकर छान लो। इसकी मात्रा ४॥ से माशे तक है । ऋतु प्रारम्भ होनेसे पहले इसे सेवन करना चाहिये । पथ्य-दूध-भात ।।
(७) पियाबाँसेकी जड़ी सवा दो माशे लेकर, पानीमें पीसकर; थोड़ेसे गायके दूधके साथ पुरुष खावे और तीन दिन तक स्त्रीको भी खिलावे, उसके बाद मैथुन करे; अवश्य गर्भ रहेगा।
(८) काले धतूरेके फूल पीसकर और शहद-धीमें मिलाकर खानेसे गर्भ रहता है।
(६) एक समन्दर-फल थोड़े-से दहीमें मिलाकर निगल जानेसे अवश्य गर्भ रहता है । यह नुसखा अनेक ग्रन्थोंमें लिखा है।
(१०) करंजवेंकी गिरी स्त्रीके दूधमें पीसकर बत्ती बना लो। इसको गर्भाशयमें रखनेसे गर्भधारण-शक्ति हो जाती है।
(११) थोड़ी-सी सरसों पीसकर, ऋतु होनेके तीन दिन बाद, शाफा करो । अवश्य गर्भ रहेगा।
(१२) एक हथेली-भर अजवायन कई दिन तक खानेसे गर्भ रहता है।
(१३) बाजकी बीट कपड़ेमें लगाकर बत्ती-सी बना लो और ऋतुसे निपटकर भगमें रखो । बाज़की बीटमें थोड़ा-सा शहद मिला: कर खाना भी जरूरी है। इन दोनों उपायोंसे गर्भ रहता है। यह नुसता अनेक ग्रन्थोंमें लिखा है। कोई-कोई बिना शहदके भी बाजकी बीट खानेकी राय देते हैं।
(१४) ऋतुके बाद, कबूतरकी बीट भगमें रखनेसे गर्भ रहता है।
(१५) असगन्ध, नागकेशर और गोरोचन-इन तीनोंको बराबर-बराबर लेकर पीस-छान लो । इसे शीतल जलके साथ सेवन करने या खानेसे गर्भ रहता है ।
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