________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५७
• स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदररोग। - नोट-कुश, कांश; शर, दर्भ औरंगना-इन पाँचोंको ‘पञ्चतृण' या पञ्चमूल कहते हैं। ___ (७६) चूहेकी मैंगनी, फिटकरी और नागकेशर,-इन तीनोंको बराबर-बराबर लाकर पीस-छान लो । इस चूर्ण को शहदमें मिलाकर खानेसे हर तरहका प्रदर रोग निश्चय ही आराम हो जाता है। परीक्षित है । मूल लेखकने भी लिखा है
आखुपुरीषस्फटिकानागकेशराणां चूर्णम् ।
मधुसहितं सर्वप्रदररोगे योगोऽयं बहुवारमनुभूतः ॥ .. (७७ ) आँवले, हरड़ और रसौतका चूर्ण--योनिसे ज़ियादा खून गिरने और सब तरहके प्रदरोंको दूर करता है । परीक्षित है। ...
(७८) बंसलोचन, नागकेशर और सुगन्धबाला;-इन सबको बराबर-बराबर लेकर पीस-छान लो । फिर, एक-एक मात्रा चाँवलोंके धोवनमें पीस-छानकर पीनेसे प्रदर रोग आराम हो जाता है । परीक्षित है। . (७६) अकेली नागकेशरको चाँवलोंके धोवनके साथ पीसकर और चीनी मिलाकर पीनेसे प्रदर रोग नाश हो जाता है। परीक्षित है। HMMMMMMAKAAMKAMAKAMSK
अमीरी नसखे। REAKKKRRRRRRRRRE
कुटजाष्टकावलेह। । कौरैयाकी जड़की गीली छाल पाँच सेर लेकर, एक कलईदार देगमें रख, ऊपरसे सोलह सेर पानी डाल, मन्दाग्निसे काढ़ा बनाओ। जब आठवाँ भाग--दो सेर पानी रह जाय, उतारकर छान लो
और फिर दूसरे छोटे कलईदार बासनमें डालकर चूल्हेपर रख दो। जब गाढ़ा होनेपर आवे, उसमें पाढ़, सेमर काम्गोंद, धायके फूल,
For Private and Personal Use Only