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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--प्रदर रोग । ३४७ ‘सिलपर पीसकर लुगदी बना लो । इस लुगदीको शहद मिलाकर खानेसे तीव्र प्रदर रोग भी नाश हो जाता है । परीक्षित है।
(१४) ककड़ीके बीजोंकी मींगी एक तोले और सफेद कमलकी 'पङ्खड़ी एक तोले लेकर पीस लो। फिर जीरा और मिश्री मिलाकर सात दिन पीओ। इस नुसनेसे श्वेत प्रदर अवश्य आराम हो जाता है।
(१५) काकजङ्घा की जड़के रसमें - लोधका चूर्ण और शहद मिलाकर पीनेसे श्वेत प्रदर नाश हो जाता है । परीक्षित है । ___नोट—काकजंघाके पत्ते ओंगा या अपामार्ग-जैसे होते हैं। वृक्ष भी उतना हो ऊँचा कमर तक होता है। नींद लाने को काकजंघा सिरमें रखते हैं। काकजंघाका रस कानमें डालने से कर्णनाद और बहरापन आराम होते और कानके कीड़े मर जाते हैं । केवल काकजंघाकी जड़को चाँवल के धोवनके साथ पीनेसे पाण्डुप्रदर शान्त हो जाता है।
(१६) छुहारोंकी गुठलियाँ निकालकर कूट-पीस लो। फिर उस चूर्णको “घी में तल लो । पीछे “गोपी चन्दन” पीसकर मिला दो। इसके खानेसे प्रदर रोग आराम हो जाता है । परीक्षित है।
(१७) खिरनीके पत्ते और कैथके पत्ते पीसकर “घी" में तल लो और खाओ। इस योगसे प्रदर रोग आराम हो जाता है । परीक्षित है।
(१८) कथीरिया गोंद रातको पानीमें भिगो दो । सवेरे ही उसमें "मिश्री' मिलाकर पीलो । इस नुसनेसे प्रदर रोग, प्रमेह और गरमीये नाश हो जाते हैं। परीक्षित है। - नोट--काँडालके पेड़में दूध-सा या गोंद-सा होता है । उसीको “कथीरिया गोंद" कहते हैं । काँडोलका वृत्त सफ़दरङ्गका होता है । इसके पत्ते बड़े और फूल लाल होते हैं । वसन्तमें प्राम-वृक्षकी तरह मौर अाकर फल लगते हैं। फल बादाम जैसे होते हैं । पकने पर मीठे लगते हैं । इसकी जड़ लाल और शीतल होती है ।
( १६ ) कपासके पत्तोंका रस, चाँवलोंके धोवनके साथ, पीनेसे प्रदर रोग आराम हो जाता है।
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