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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (६) रोगीको पथ्यसे रखो । मांस, मछली, अचार, चटनी, सिरका, दही, माठा, खटाई, गरम और तेज पदार्थ उसे न दो। काँसीकी थालीमें खानेको मत खिलाओ और दर्पण मत देखने दो। नदी, तालाब, कूआ और नहर आदि जलाशयोंके पास उसे मत जाने दो। पानी भी पिलाओ, तो नेत्र बन्द करवाकर पिलाओ। हर तरह पानी और सर्दीसे रोगीको बचाओ।
हा
आयुर्वेदके मतसे बावले कुत्तोंके
काटेकी चिकित्सा ।
वैद्यक-ग्रन्थों में लिखा है, बावले कुत्तेके काटते ही, फौरन, नीचे लिखे उपाय करोः
(१) दाढ़ लगे स्थानका खून निचोड़कर निकाल दो। खून निकालकर उस स्थानको गरमागर्म घीसे जला दो।
(२) घावको घोसे जलाकर, सर्प-चिकित्सामें लिखी हुई महा अगद आदि अगदोंमेंसे कोई अगद घी और शहद आदिमें मिलाकर पिलाओ अथवा पुराना घी ही पिलाओ।
(३) पाकके दूधमें मिली हुई दवाकी नस्य देकर, सिरकी मलामत निकाल दो। .
(४) सफ़ेद पुनर्नवा और धतूरेकी जड़ थोड़ी-थोड़ी रोगीको दो।
(५) तिलका तेल, आकका दूध और गुड़-बावले कुत्ते के विषको इस तरह नष्ट करते हैं, जिस तरह वायु या हवा बादलोंको उड़ा देती है। तिलीका तेल गरम करके लगाते हैं। तिलोंको पीसकर घावपर रखते हैं । आकके दूधका घावपर लेप करते हैं।
(६) लोकमें यह बात प्रसिद्ध है कि, बावले कुत्ते के काटे आदमीको "हड़कवाय" न होने पावे | अगर हो गई तो रोगीका बचना कठिन है।
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