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चिकित्सा-चन्द्रोदयं । . और भी कहा है:-चूँ कि विष अत्यन्त तीक्ष्ण और गरम होता है, इसलिये प्रायः सभी विषों में शीतल परिषेक करना या शीतल छिड़के देने चाहिये पर कीड़ोंका विष बहुत तेज़ नहीं होता, मन्दा होता है। इसके सिवा, उनके विषमें कफवायुके अंश अधिक होते हैं, अतः कीड़ोंके विषमें पसीना निकालने या सेक करनेकी मनाही नहीं है, परन्तु कहीं-कहीं गरम सेककी मनाही भी है। मतलब यह है, चिकित्सामें तर्क-वितर्क और विचारकी बड़ी ज़रूरत है। जिस विषमें वात-कफ हों, उसमें पसीने निकालने ही चाहिएँ, क्योंकि कफके विषसे प्रायः सूजन होती है और सूजनमें स्वेदन कर्म करना या पसीने निकालना हितकारक है।
(१) बच, हींग, बायबिडंग, सेंधानोन, गजपीपर, पाठा, अतीस, सोंठ, मिर्च और पीपर इन दसोंको पानीके साथ सिलपर पीसकर पीने और इन्हींका काटे स्थानपर लेप करनेसे सब तरहके कीड़ोंका विष नष्ट हो जाता है। इसका नाम “दशाङ्ग योग” है। यह काश्यप मुनिका निकाला हुआ है।
नोट-दशांग योग अनेक बारका श्राज़मूदा है। चूहेके काटेपर भी इससे फ़ौरन लाभ होता है । सभी कीड़ोंके काटने पर इसे लगाना चाहिये।
(२) पीपल, पाखर, बड़, गूलर और पारस पीपल,-इनकी छालको पानीके साथ पीसकर लेप करनेसे प्रायः सभी कीड़ोंका विष नष्ट हो जाता है।
(३) हींग, कूट, तगर, त्रिकुटा, पाढ़, बायबिडंग, सेंधानोन, जवाखार और अतीस-इन सबको पानीके साथ एकत्र पीसकर लेप करनेसे कीड़ोंका जहर उतर जाता है।
(४) कलिहारी, निर्विषी, तूम्बी, कड़वी तोरई और मूलीके बीज इन सबको एकत्र काँजीमें पीसकर लेप करनेसे कीड़ोंका विष नाश हो जाता है।
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