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चिकित्सा-चन्द्रोदय । शीतल हवा, पुरवाई हवा, शीतल भोजन, शीतल जलके स्नान, दिनमें सोने, मेहमें फिरने और अजीर्ण करनेवाले पदार्थोंसे अवश्य दूर रखना जरूरी है। इस रोगमें यह बड़ी बात है, कि मेह बरसने या बादल होनेसे यह अवश्य ही कुपित होता है । वाग्भट्ट में लिखा है:--
सशेषं मूषकविषं प्रकुप्यत्यभूदर्शने ।
यथायथं वा कालेषु दोषाणां वृद्धिहेतुषु ।। बाक़ी रहा हुआ चूहेका विष बादलोंके देखनेसे प्रकुपित होता है अथवा वातादि दोषोंके वृद्धिकालमें कुपित होता है।
र मूषक-विष-नाशक नुसखे ।
१-वमनकारक दवाएँ(क ) कड़वी तोरई और सिरसके बीजोंसे वमन कराओ।
(ख ) अरलू , जंगली तोरई, देवदाली और मैनफलके काढ़ेसे वमन कराओ।
(ग) कड़वी तोरई, सिरसका फल, जीमूत और मैनफलका चूर्ण दहीमें मिलाकर खिलाओ और वमन कराओ। (घ) सिरस और अङ्कोलके काढ़ेसे वमन कराओ ।
२-विरेचक या जुलाबकी दवाएँ (क) निशोथ, दन्ती और त्रिफलेके कल्क द्वारा दस्त कराओ।
(ख) निशोथ, कालादाना और त्रिफला--इनके कल्कसे दस्त कराओ।
३-लेपकी दवाएँ(क) अङ्कोलकी जड़ बकरीके मूत्रमें पीसकर लेप करो। (ख) करंजकी छाल और उसके बीजोंको पीसकर लेप करो। (ग) कैथके बीजोंका तेल लगाओ। (घ) सिरसकी जड़को बकरीके मूत्रमें पीसकर लेप करो।
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