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बिच्छकी चिकित्सामें याद
रखने-योग्य बातें।
(१) मूलीका छिलका बिच्छूपर रखने या मूलीके पत्तोंका स्वरस बिच्छूपर डालनेसे बिच्छू मर जाता है । खीरेके पत्तों और उसके स्वरसमें भी यही गुण हैं। मूलीके छिलके बिच्छूके बिलपर रख देनेसे बिच्छू बाहर नहीं आता । जो मनुष्य सदा मूली और खीरे खाता है, उसे बिच्छूका विष हानि नहीं करता। जहाँ बिच्छुओंका जियादा जोर हो, वहाँ मनुष्योंको मूली और खीरे सदा खाने चाहियें। अगर घरमें एक बिच्छू पकड़कर जला दिया जाता है, तो घरके सारे बिच्छू भाग जाते हैं। वैद्योंको ये सब बातें अपनेसे सम्बन्ध रखनेवालोंको बता देनी चाहिए ।
(२) अगर मध्यम और महा विषवाले बिच्छू काटें, तो फौरन ही बन्ध बाँधो; यानी अगर बिच्छू बन्ध बाँधने-योग्य स्थानों -हाथ, पाँव, अँगुली प्रभृति--में डंक मारे, तो आप सब काम और सन्देह छोड़कर, डंक मारी हुई जगहसे चार अंगुल ऊपरकी तरफ, सूत, नर्म चमड़ा या सुतली प्रभृतिसे कसकर बन्ध बाँध दो। इतना कसकर भी न बाँधो, कि चमड़ा कट जाय और इतना ढीला भी न बाँधो कि, खून नीचेका नीचे न रुके । एक ही बन्ध बाँधकर सन्तोष न कर लो । जरूरत हो तो पहले के बन्धसे कुछ ऊपर दूसरा और तीसरा बन्ध भी बाँध दो। साँपके काटनेपर भी ऐसे ही बन्ध लगाये जाते हैं । चूँ कि तेज़ ज़हरवाले बिच्छुओं और साँपोंमें कोई भेद नहीं । इनका काटा हुआ भी मर जाता है, अतः सर्पके काटनेपर जिस तरहके बन्ध आदि बाँधे जाते हैं या जो-जो क्रियाएँ की जाती हैं, वही सब बिच्छू-खासकर उग्र विषवाले बिच्छूके काटनेपर भी करनी चाहिये । वाग्भट्टमें लिखा है:
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