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सर्प-विषकी सामान्य चिकित्सा । मिट्टीके ढेलेको काट खाय तो साँपका जहर नहीं चढ़ता। किसीकिसीने उसी समय दाँतोंसे लोहेको काट लेना यानी दबा लेना भी अच्छा लिखा है।
नोट--सर्पके काटते ही, सर्पको पकड़कर काट खाना सहज काम नहीं। इसके लिए बड़े साहस और हिम्मतकी दरकार है । यह काम सब किसीसे हो नहीं सकता। हाँ, जिसे कोई महा भयंकर साँप काट ले, वह यदि यह समझकर कि मैं बचूँगा तो नहीं, फिर इस साँपको पकड़कर काट लेनेसे और क्या हानि होगी-हिम्मत करे तो साँपको दाँतसे काट सकता है। ___ यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि साँपको काटनेसे मनुष्य किस तरह बच सकता है ? सुनिये, हमारे ऋषि-मुनियोंने जो कुछ लिखा है; वह उनका परीक्षा किया हुआ है--गंजेड़ियोंकी-सी थोथी बातें नहीं। बात इतनी ही है कि, उन्होंने अपनी लिखी बातें अनेक स्थलोंमें खूब खुलासा नहीं लिखीं; जो कुछ लिखा है, संक्षेपमें लिख दिया है। मालूम होता है, साँपके खूनमें विष-विनाशक शक्ति है। जो मनुष्य दाँतोंसे साँपको काटेगा, उसके मुखमें कुछ-न-कुछ खून अवश्य जायगा। खून भीतर पहुँचते ही विषके प्रभावको नष्ट कर देगा। अाजकलके डाक्टर परीक्षा करके लिखते हैं कि, साँपके काटे स्थान पर साँपके खूनके पछने लगानेसे साँपका विष उतर जाता है। बस, यही बात वह भी है। इस तरह भी साँपका खून विषको नष्ट करता है और उस तरह भी । उसी साँपको काटनेको बात ऋषियोंने इसीलिये लिखी है कि, जैसा ज़हरी साँप काटेगा, उस साँपके
खूनमें वैसे जहर को नाश करने की शक्ति भी होगी। दूसरे साँपके खून में विषनाशक शक्ति तो होगो, पर कदाचित् वैसी न हो । पर साँपको काट खाना--है बड़ा भारी कलेजेका काम । अनेक बार देखा है, जब साँप और नौलेकी लड़ाई होती है, तब साँप भी नौलेपर अपना बार करता है और उसे काट खाता है; पर चूँ कि नौला साँपसे नहीं डरता, इस लिये वह भी उसपर दाँत मारता है. इस तरह साँपका खून नौलेके शरीरमें जाकर, साँपके विषको नष्ट कर देता होगा। मतलब यह, कि ऋषियोंकी साँपको काट खानेकी बात फ़िजूल नहीं।
हाँ, साँपके काटते ही, मिट्टीके ढेलेको काट खाना या लोहेको दाँतोंसे दबा लेना कुछ मुश्किल नहीं । इसे हर कोई कर सकता है। अगर, परमात्मा न करे, ऐसा मौका पाजाय, साँप काट खाय, तो मिट्टीके देले या लोहेको काटनेसे न चूकना चाहिये।
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