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सर्प-विषकी सामान्य चिकित्सा ।
२३६. तो ६ माशे यही जड़ पानीके साथ पीसकर और आधपाव पानीमें घोलकर फिर पिला दो। इससे फिर वमन होगी और जो कुछ विष बचा होगा, निकल जायगा । अगर एक दफा पिलानेसे आराम न हो, तो कमोवेश मात्रा घण्टे-घण्टेमें पिलानी चाहिये । इस जड़ीसे साँपका काटा हुआ निस्सन्देह आराम हो जाता है । राजवैद्यजी लिखते हैं;. हमने इस जड़ीको अनेक बार आजमाया और ठीक फल पाया । वह इसे कुत्ते के काटे और अफीमके विषपर भी आजमा चुके हैं।
सूचना-दीकर या फनवाले साँपके लिये इसकी मात्रा १ तोलेकी है । कम ज़हरवाले साँपोंके लिये मात्रा घटाकर लेनी चाहिये । १ तोले जड़को दस तोले पानी काफी होगा । जड़ीको पानी के साथ सिलपर पीसकर, पानीमें घोल लेना चाहिये । अगर उम्र पूरी न हुई होगी, तो इस जड़ीके प्रभावसे हर तरहके . साँपका काटा हुअा मनुष्य बच जायगा।
नोट-नागनबेल एक तरहकी बेल होती है। इसकी जड़ बिल्कुल साँपके. प्राकारकी होती है । यह स्वादमें बहुत ही कड़वी होती है । मालवेमें इसे "नागनबेल" कहते हैं और वहींके पहाड़ोंमें यह पाई भी जाती है।
एक निघण्टुमें "नागदस" नामकी दवा लिखी है । लिखा है-यह बिल्कुल साँपके समान लकड़ी है, जिसे हिन्दुस्तानके फ़कीर अपने पास रखते हैं । इसका स्वरूप काला और स्वाद कुछ कड़वा लिखा है। लिखा है-यह साँपके ज़हरको नष्ट करती है। हम नहीं कह सकते, नागन बेल और नागदस-दोनों एक ही चीज़के नाम हैं या अलग-अलग । पहचान दोनोंकी एक ही मिलती है।
नागदमनी, जिसे नागदौन, या नागदमन कहते हैं, इनसे अलग होती है। यद्यपि वह भी सर्प-विष, मकड़ीका विष एवं अन्य विष नाशक लिखी है, पर उसके वृक्ष तो अनन्नासके जैसे होते हैं । दवाके काममें नाग नबेलकी जड़ ली जाती है, पर नागदौनके पत्त लिये जाते हैं।
नागनबेलके अभावमें सफ़ेद पुनर्नवासे काम लेना बुरा नहीं है । इससे भी अनेक सर्पके काटे श्रादमी बच गये हैं, पर यह नागनबेलकी तरह १०० में १०० को पाराम नहीं कर सकता। . (६०) सफ़ेद पुनर्नवा या विषखपरेकी जड़ ६ माशेसे १ तोले तक पानीमें पीस और घोलकर पिलानेसे और यही जड़ी हर समय मैं हमें
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