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चिकित्सा-चन्द्रोदयः। भारङ्गी, पटोल, किणही, पाठा, इन्द्रायणका फल, गूगल, निशोथ, 'अशोक, सुपारी, तुलसीकी मञ्जरी और भिलावेके फूल--इन सब दवाओंको बराबर-बराबर लेकर महीन पीस लो। फिर इसमें सूअर, गोह, मोर, शेर, बिलाव, साबर और न्यौला- इनके "पित्ते" मिला दो। शेषमें "शहद मिलाकर, गायके सींगमें भरकर, सींगसे ही बन्द करके १५ दिन रक्खी रहने दो। इसके बाद काममें लाओ।...
जिस घरमें यह अगद होती है, वहाँ कैसे भी भयङ्कर नाग नहीं रह सकते । फिर बिच्छू वगैरःकी तो ताकत ही क्या जो घरमें रहें। अगर इस दवाको नगाड़ेपर लेप करके, साँपके काटे आदमीके सामने उसको बजावें, तो विष नष्ट हो जायगा। अगर इसे ध्वजापताकाओंपर लेप कर दें, तो साँपके काटे आदमी उनकी हवा-मात्र शरीरमें लगने या उनके देखनेसे ही आराम हो जायँगे।
अमृत घृत । चिरचिरेके बीज, सिरसके बीज, मेदा, महामेदा और मकोयइनको गोमूत्रके साथ महीन पीसकर कल्क या लुगदी बना लो। इस घीसे सब तरहके विष नष्ट होते और मरता हुआ भी जी जाता है। - नोट-कल्कके वज़नसे चौगुना गायका घी और घीसे चौगुना गोमूत्र लेना । फिर सबको चूल्हेपर चढ़ाकर मन्दाग्निसे घी पका लेना। .
नागदन्त्याद्य घत । नागदन्ती, निशोथ, दन्ती और थूहरका दूध--प्रत्येक चार-चार तोले, गोमूत्र २५६ तोले और उत्तम गो-घृत ६४ तोले,--सबको मिलाकर चूल्हेपर चढ़ा दो और मन्दाग्निसे धी पका लो । जब गो-मूत्र आदि जलकर घी-मात्र रह जाय उतार लो। इस घीसे साँप, बिच्छू और कीड़ोंके विष नाश होते हैं।
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