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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नोट-गर्भवती, बालक और बूढ़ेका खून मत निकालो, यानी फस्द मत खोलो । जहाँ तक हो सके, यथोचित नर्म उपायोंसे काम करो । कहा है:
गर्भिणी बालवृद्धानां शिराव्यधविवर्जितम् ।
विषार्तानां यथोद्दिष्टं विधानं शस्यतेमृदु ॥ सूचना-इवा सेवन कराते समय--देश, काल, प्रकृति, सात्म्य, विष-वेग और रोगीके बलाबलका विचार करके दवा देना ही चतुराई है।
दोषानुरूप चिकित्सा। जिस साँपके काटे हुएके शरीरका रंग विषके प्रभावसे बिगड़ गया हो, शरीरमें वेदना और सूजन हो-उसका खून फौरन निकाल दो। _ अगर विषार्त भूखा हो और वातप्रायः उपद्रव हों, तो उसे शहद और घी, मांसरस, दही या माठा पिलाओ।
अगर प्यास, दाह, गरमी, मूर्छा और पित्तके उपद्रव हों तथा पित्तज ही विष हो, तो शीतल पदार्थों का स्पर्श, लेप, स्नान-अवगाहन आदि शीतल क्रिया करो।
अगर सर्दीकी ऋतु हो, कफके उपद्रव-शीत कम्प आदि हों, कफका ही विष हो और मूर्छा तथा मद हो, तो तेज़ वमनकारक दवा देकर वमन कराओ। नोट--यह ढंग स्थावर और जंगम दोनों विषोंकी चिकित्सामें चलता है।
__उपद्रवोंके अनुसार चिकित्सा । (१) जिसके कोठेमें दाह या जलन हो, पीड़ा हो, अफारा हो, मल, मूत्र और अधोवायु रुके हों, पैत्तिक उपद्रवोंसे पीड़ा हो, तो ऐसे विषातको विरेचन या जुलाब दो।
(२) जिसके नेत्रोंके कोये सूजे हुए हों, नींद बहुत आती हो,
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