________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८२
चिकित्सा-चन्द्रोदय । उनका जहर विशेष कष्ट-दायक नहीं होता । वाग्भट्टने-रतिसे क्षीण, जलमें डूबे हुए, शीत, वायु, घाम, भूख, प्यास और परिश्रमसे पीड़ित, शीघ्र ही अन्य देशमें प्राप्त हुए, देवताके स्थानके पास बैठे हुए या चलते हुए, ये और लिखे हैं, जिनका विष अल्प होता है और उसमें तेजी नहीं होती।
दीकर या फनवाले चढ़ती उम्र या भर जवानीमें, मण्डली ढलती अवस्था या बुढ़ापेमें और राजिल बीचकी या अधेड़ अवस्थामें अगर किसीको काटते हैं, तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
साँपोंके विषके लक्षण ।
दीकर। यह हम पहले लिख आये हैं, कि दर्वीकर साँपोंकी प्रकृति वायुकी होती है; इसलिये दीकर-कलछी जैसे फनवाले काले साँप या घोर काले साँपोंके डसने या काटनेसे चमड़ा, नेत्र, नाखून, दाँत, मल-मूत्र काले हो जाते और शरीरमें रूखापन होता है; इसलिये जोड़ोंमें वेदना
और खिंचाव होता है, सिर भारी हो जाता है; कमर, पीठ और गर्दनमें निहायत कमजोरी होती है; जभाइयाँ आती हैं; शरीर काँपता है; आवाज़ बैठ जाती है; कण्ठमें घर-घर आवाज़ होती है; सूखी-सूखी डकारें आती हैं; खाँसी, श्वास, हिचकी, वायुका ऊँचा चढ़ना, शूल, हड़फूटन, ऐंठनी, जोरकी प्यास, मुँ हसे लार गिरना, झाग आना और स्रोतोंका रुक जाना प्रभृति वात-व्याधियोंके लक्षण होते हैं। ___ नोट-जोड़ोंमें दर्द, जंभाई, चमड़ा और नेत्र श्रादिका काला हो जाना प्रभुति वायु-विकार हैं। चूँ कि दीकरोंकी प्रकृति वातज होती है, अतः उनके विषमें भी वायु ही रहती है। इससे जिसे ये काटते हैं, उसके शरीरमें वायुके अनेक विकार होते हैं।
मण्डली। मण्डली सर्प पित्त-प्रकृति होते हैं, अतः उनके विषसे चमड़ा, नेत्र, नाख, दाँत, मल और मूत्र- ये सन पीले या सुर्जी माइल पीले हो जाते
For Private and Personal Use Only