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शत्रुओं द्वारा दिये हुए विषकी चिकित्सा। १६३ - (३) मूषिका या अजरुहा--असली निर्विषीको हाथमें बाँध देनेसे खाये-पिये विष-मिले पदार्थ निर्विष हो जाते हैं।
(४) मित्रोंमें बैठकर दिल खुश करते रहना चाहिये । “अजेय घृत" और "अमृत घृत" नित्य पीना चाहिये । घी, दूध, दही, शहद
और शीतल जल-इनको पीना चाहिये। शहद और घी मिला सेमका यूष भी हितकारी है।
नोट-पैत्तिक या पित्त-प्रकृतिवाले विषपर शीतल जल पीना हित है, पर वातिक या बादीके स्वभाववाले विषपर शीतल जल पीना ठीक नहीं है। जैसे, संखिया खानेवालेको शीतल जल हानिकारक और गरम हितकारी है। हर एक काम विचारकर करना चाहिये।
(५) जिसने चुपचाप विष खा लिया हो, उसे पीपर, मुलेठी, शहद, खाँड़ और ईखका रस--इनको मिलाकर पीना और वमन कर देना चाहिए।
गर-विष-चिकित्सा ।
XXXXXXXXXXXXXX Yes हूदा स्त्रियाँ अपने पतियोंको वशमें करनेके लिये, पसीना,
मासिक-धर्मका खून-रज और अपने या पराये शरीरके * * मैलोंको अपने पतियोंको भोजन इत्यादिमें मिलाकर खिला देती हैं । इसी तरह शत्रु भी ऐसे ही पदार्थ भोजनमें मिलाकर खिला देते हैं । इन पसीना आदि मैले पदार्थो को “गर” कहते हैं। __पसीने और रज-प्रभृति गर खानेसे शरीरमें पाण्डुता होती, बदन कमजोर हो जाता, ज्वर आता, मर्मस्थलोंमें पीड़ा होती तथा धातुक्षय और सूजन होती है। सुश्रुतमें लिखा है:
योगैर्नानाविधैरेषां चूर्णेन गरमादिशेत् ।
दृषीविषप्रकाराणां तथैवाप्यनुलेपनात् ॥ विषैले जन्तुओंको पीसकर स्थावर विष आदि नाना प्रकारके
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