________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६०
चिकित्सा - चन्द्रोदय |
और उन्हें अपनी उँगलियों पर नचानेके कारण उसे राक्षस कहते थे । यद्यपि ये सब बातें भारतीयों के लिये नयी नहीं हैं। उनके देशमें ही ये सब काम होते थे; पर अब कालके फेरसे वे सब विद्याओं को भूल गये और अपनी विद्याओंका दूसरों द्वारा उपयोग होनेसे चकित और विस्मित होते हैं ! धन्य ! काल तेरी महिमा !
अच्छा, अब फिर मतलब की बातपर आते हैं। अगर जल विषसे दूषित होता है, तो वह कुछ गाढ़ा हो जाता है, उसमें तेज़ बू होती है, भाग आते और लकीरें-सी दीखती हैं । जलाशयों में रहनेवाले मैंडक और मछली उनमें मरे हुए देखे जाते हैं और उनके किनारेके पशुपक्षी पागल से होकर इधर-उधर घूमते हैं । ये विष-दूषित जल के लक्षण हैं। अगर ऐसे जलको मनुष्य और घोड़े, हाथी, खच्चर, गधे तथा बैल वग़ैर जो पीते हैं या ऐसे जलमें नहाते हैं, उनको वमन, मूर्च्छा, ज्वर, दाह और शोथ - - सूजन --ये उपद्रव होते हैं । वैद्यको विष- दूषित जलसे पीड़ित हुए प्राणियोंको निर्विष और पानीको भी • शुद्ध और निर्दोष करना चाहिये ।
जल-शुद्धि-विधि |
( १ ) धव, अश्वकर्ण - शालवृक्ष, विजयसार, फरहद, पाटला, सिन्दुवार, मोखा, फिरमाला और सफेद खैर - इन ६ चीज़ों को जलाकर राख कर लेनी चाहिये । इनकी शीतल भस्म नदी, तालाब, कूएँ, बावड़ी आदिमें डाल देनेसे जल निर्विष हो जाता है । अगर थोड़े से पानी की दरकार हो, तो एक पस्से-भर यही राख एक घड़े-भर पानी में घोल देनी चाहिये । जब राख नीचे बैठ जाय और पानी साफ़ हो जाय, तब उसे शुद्ध समझकर पीना चाहिये ।
नोट - (१) धाय या धवके वृक्ष वनोंमें बहुत बड़े-बड़े होते हैं। इनकी लकड़ी हल- मूसल बनते हैं । (२) शालके पेड़ भी वनमें बहुत बड़े-बड़े होते हैं । - (३) विजयसारके वृक्ष भी वनमें बहुत बड़े-बड़े होते हैं । (४) फरहद या पारि- भद्रके वृक्ष भी वनमें होते हैं । ( ५ ) पाटला या पाढरके वृत्त भी वनमें बड़े-बड़े
For Private and Personal Use Only