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चिकित्सा-चन्द्रोदय । ग्रन्थोंमें लिखा है, इस रोगमें गरम पानी पीनेको न देना चाहिये । चनेकी रोटी कबूतरके मांस या तीतरके साथ खानी चाहिये ।
(१६) शुद्ध कुचलेको आगपर रख दो। जब धूआँ निकल जाय, उसे निकालकर तोलो। जितना कुचला हो, उतनी ही कालीमिर्च ले लो। दोनोंको पानीके साथ पीसकर उड़द-समान गोलियाँ बना लो। इन गोलियोंको बँगला पानमें रखकर, रोज सवेरे खानेसे अर्धाङ्ग रोग, पक्षवध या पक्षाघात-फालिज आराम होता है । इसके सिवा लकवा- अर्दित रोग, कमरका दर्द, दिमाग़की कमजोरी-ये शिकायतें भी नष्ट हो जाती हैं । अव्वल दर्जेकी दवा है।
(१७) शुद्ध कुचला दो रत्ती और शुद्ध काले धतूरेके बीज दो रत्तीइन दोनोंको पानमें रखकर खानेसे अपतन्त्रक रोग नाश हो जाता है । ___ नोट-वायुके कोपसे हृदयमें पीड़ा प्रारम्भ होकर ऊपरको चढ़ती है और सिरमें पहुँचकर दोनों कनपटियोंमें दर्द पैदा कर देती है तथा रोगीको धनुषकी तरह मुकाकर आक्षेप और मोह पैदा कर देती है । इस रोगवाला बड़ी तकलीफसे ऊँचे-ऊँचे साँस लेता है। उनके नेत्र ऊपरको चढ़ जाते हैं, नेत्रोंको रोगी बन्द रखता है और कबूतरको तरह बोलता है। रोगीको शरीरका ज्ञान नहीं रहता। इस रोगको "अपतंत्रक" रोग कहते हैं ।
(१८) शुद्ध कुचला, शुद्ध अफीम और कालीमिर्च-तीनों बराबर-बराबर लेकर, महीन पीस लो। फिर खरलमें डालकर बँगला पानके रसके साथ घोटो और रत्ती-रत्ती-भरकी गोलियाँ बनाकर छायामें सुखा लो। इन गोलियोंका नाम "समीरगज-केशरी बटी" है। एक गोली खाकर, ऊपरसे पानका बीड़ा खानेसे दण्डपतानक रोग नाश होता है। इतना ही नहीं, इन गोलियोंसे समस्त वायु रोग, हैजा और मृगी रोग भी नाश हो जाते हैं। ___नोट-जब वायुके साथ कफ भी मिल जाता है, तब सारा शरीर डण्डेको तरह जकड़ जाता और डण्डेकी तरह पड़ा रहता है-हिल-चज नहीं सकता, उस समय कहते हैं "दण्डापतानक" रोग हुआ है।
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