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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"कुचला"। १३३ .. (४) कुचला ज़ियादा खा जानेसे जो जहरीला असर होता है, उससे हर दो-दो या तीन-तीन मिनटमें वेग आते और जाते हैं। जब वेग आता है, तब शरीर खिंचने लगता है और जब वेग चला जाता है और दूसरा वेग जब तक नहीं आता, इस बीचमें रोगीको चैन हो जाता है-शरीर तननेकी पीड़ा नहीं होती । जब दूसरा वेग फिर दो या तीन मिनटमें आता है, तब फिर शरीर खिंचने लगता है;
पर धनुस्तम्भ रोग होनेसे, वेग एकदम चला नहीं जाता । हाँ, उसका ज़ोर कुछ देरके लिये हल्का हो जाता है । वेगका जोर हल्का होनेसे शरीरका खिंचाव भी हल्का होना चाहिये, पर हल्का होता नहीं, शरीर ज्यों-का-त्यों बना रहता है।
खुलासा . कुचलेसे दो-दो या तीन-तीन मिनटमें रह-रहकर शरीर तनता या खिंचता है । जब वेग चला जाता है और जितनी देर तक फिर नहीं
आता, रोगी आरामसे रहता है, पर धनुस्तम्भमें खींचातानीका वेग केवल जरा हल्का होता है--साफ नहीं जाता और वेग हल्का होनेपर भी शरीर जैसे-का-तैसा बना रहता है।
और भी खुलासा कुचलेके विषैले प्रभाव और धनुस्तम्भ रोग-दोनोंमें ही वेग होते हैं। कुचलेवाले रोगीको दो-दो या तीन-तीन मिनटको चैन मिलता है, पर धनुस्तम्भवालेको इतनी-इतनी देरको भी आराम नहीं मिलता।
(५) कुचलेका बीमार दो-चार घण्टोंमें मर जाता है, अथवा आराम हो जाता है;
पर धनुस्तम्भका बीमार दो-चार घण्टों में ही मर नहीं जाता--वह एक, दो, चार या पाँच दिन तक जीता रहता है और फिर मरता है या आराम हो जाता है।
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