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चिकित्सा-चन्द्रोदय । पीठका बाँसा फटा पड़ता है, क्षण-भर भी कल नहीं पड़ती । उसे न सोते चैन न बैठे कल । पैरोंमें जरा भी बल नहीं रहता । खड़े होनेसे गिर पड़ता है । चल-फिर तो सकता ही नहीं। उसे हर दम एक तरहका डर-सा लगा रहता है । वह हर किसीसे अफीम माँगता और कहता है कि, बिना अझीमके मेरी जान न बचेगी। पसीने इतने आते हैं, कि कपड़े तर हो जाते हैं, चाहे माघ-पूसके दिन ही क्यों न हों । इन दिनों क़ब्ज़ तो न जाने कहाँ चला जाता है, उल्टे दस्त-पर-दस्त लगते हैं । चौबीस घण्टेमें तीस-तीस और चालीस-चालीस दस्त तक हो जाते हैं। रात-दिन नींद नहीं आती, कभी लेटता है और कभी भडभड़ा कर उठ बैठता है । प्यासका जोर बढ़ जाता है । उत्साहका नाम नहीं रहता । बारम्बार पेशाबकी हाजत होती है । बीमारको अपना मर जाना निश्चित-सा जान पड़ता है; पर अफीम छोड़नेसे मृत्यु हो नहीं सकती। यह अफीम छोड़नेवालेके दिलकी कमजोरी है । लिख चुके हैं कि, १०।५. दिनका कष्ट है।
__ अफ्रीमका ज़हरीला असर । . अफ्रीम स्वादमें कड़वी जहर होती है, इसलिये दूसरा आदमी किसीको मार डालनेकी ग़रजसे इसे नहीं खिलाता; क्योंकि ऐसी कड़वी चीज़को कौन खायगा ? हत्या करनेवाले संखिया देते हैं, क्योंकि उसमें कोई स्वाद नहीं होता। वह जिसमें मिलाया जाता है, मिल जाता है। अफीम जिस चीज़में मिलायी जाती है, वह कड़वी होनेके सिवा रङ्गमें भी काली हो जाती है । पर संखिया किसी भी पदार्थ के रूपको नहीं बदलता; अतः अफीमको स्वयं अपनी हत्या करनेवाले ही खाते हैं । बहुत लोग इसे तेलमें मिलाकर खा जाते हैं, क्योंकि तेलमें मिली अफीम खानेसे, कोई उपाय करनेसे भी खानेवाला बच नहीं सकता । कम-से-कम दो
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