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चिकित्सा-चन्द्रोदय । और एक हिस्सा शुद्ध अफीम मिलती है । जो बिना शोधी अफीम खाते हैं, उन्हें अनेक रोग हो जाते हैं । ___ मुसल्मानी राजत्व-कालमें, दरबारके समय, अफीमकी मनुहारकी चाल बहुत हो गई। वहींसे यह चाल देशी रजवाड़ोंमें भी फैल गई । जहाँ अफीमकी मनुहार नहीं की जाती, वहाँकी लोग निन्दा करते हैं। इसलिये ग़रीब-से-गरीब भी घर-आयेको अफीम घोलकर पिलाता है। ये बातें हमने मारवाड़में आँखोंसे देखी हैं। पर इतनी ही .खैर है कि, यह चाल राजपूतों, चारणों या राजके कारबारियोंमें ही अधिक है। मामूली लोग या ब्राह्मण-बनिये इससे बचे हुए हैं । अगर खाते भी हैं, तो अल्प मात्रामें और नियत समयपर । ___ अफीमका प्रचार यों तो किसी-न-किसी रूपमें सारी दुनियामें फैल गया है, पर भारत और खासकर चीन देशमें अफीमका प्रचार बहुत है। भारतमें इसे घोलकर या योंही खाते हैं। एक विशेष प्रकारकी नलीमें रखकर, ऊपरसे आग रखकर, तमाखूकी तरह भी पीते हैं । इसको चण्डू पीना कहते हैं। अफीम पिलानेके चण्डूखाने भारतमें जहाँ-तहाँ देखे जाते हैं । चीनमें तो इनकी अत्यन्त भरमार है। भारत और चीनमें, इसे छोटे-छोटे नवजात शिशुओंको भी उनकी मातायें बालवू टीमें या योंही देती हैं। इसके खिला-पिला देनेसे बालक नशेमें पड़ा रहता है, रोता-झींकता नहीं; माँ अपना घरका काम किया करती है। पर इसका नतीजा खराब होता है। अफीम खानेवाले बच्चे और बच्चोंकी तरह हृष्ट-पुष्ट और बलवान नहीं होते। - योरुपमें अफीमका सत्त निकाला जाता है। इसे मारफिया कहते हैं। इसमें एक विचित्र गुण है। शरीरके किसी भागमें असह्य वेदना या दर्द होता हो, उस जगह चमड़ेमें बहुत ही बारीक छेद करके, एक सुईके द्वारा उसमें मारफियाकी एक बूंद डाल
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