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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-“भाँग”। १ (७) भाँग और अफीम मिलाकर खानेसे ज्वरातिसार नाश हो जाता है। कहा हैः-- . ज्वरस्यैवातिसारे च योगो भंगाहिफेनयोः॥
(८) वात-व्याधिमें बच और भाँगको एकत्र मिलाकर सेवन करना हितकारक है। पर साथ ही तेलकी मालिश और पसीने लेनेकी भी दरकार है।
माँगका नशा या मद नाश करनेके उपाय । प्रारम्भिक उपाय:
"वैद्यकल्पतरू" में एक सज्जन लिखते हैं--भाँग या गाँजेका नशा अथवा विष चढ़नेसे आँखें और चेहरा लाल हो जाता है, रोगी हँसता, हल्ला करता और गाली देता या मारने दौड़ता है तथा रह-रहकर उन्मादके-से लक्षण होते हैं।
उपाय:-- (१) क़य और दस्त करायो । (२) सिरपर शीतल जलकी धारा छोड़ो। (३) एमोनिया सुँघाओ। (४) रोगीको सोने मत दो। (५) दही या माठेके साथ भात खिलाओ।
नोट- हमारे यहाँ भाँगमें सोने देने की मनाही नहीं-उल्टा सुलाते हैं और अक्सर गहरा नशा उतर भी जाता है । शायद "कल्पतरु"के लेखक महोदयने न सोने देनेकी बात किसी ऐसे ग्रन्थके आधारपर लिखी हो, जिसे हमने न देखा हो अथवा भाँगसे रोगीकी मृत्यु होनेकी संभावना हो, उस समय सोने देना बुरा हो ।
(१) भङ्गका नशा बहुत ही तेज हो, रोगी सोना चाहे तो सो जाने दो । सोनेसे अक्सर नशा उतर जाता है। अगर भाँग खानेवालेके गलेमें खुश्की बहुत हो, गला सूखा जाता हो, तो उसके गलेपर घी
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