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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा--"धतूरा"। ७३: (१) धतूरेके बीजोंका तेल निकालकर, उसमेंसे एक सींकभर तेल पानमें लगाकर खानेसे स्त्री-प्रसङ्गमें रुकावट होती है।
(२) धतूरेकी जड़, गायके माठेमें पीसकर, लगानेसे विद्रधि नाश हो जाती है। _ (३) धतूरेके पत्तेपर तेल चुपड़कर बाँधनेसे स्नायु-रोग नष्ट होता है। __ (४) धतूरेके शोधे हुए बीज १ मिट्टीके कुल्हड़ेमें भरकर, मुंह बन्द करके, ऊपरसे कपड़-मिट्टी करके सुखा लो। फिर आगमें रखकर फूंक दो । पीछे शीतल होनेपर राखको निकाल लो। इस राखके खानेसे जूड़ी-ज्वर और कफ नाश हो जाता है। __ (५) धतूरेकी जड़ जो उत्तर दिशाको गई हो, ले आओ। फिर उसे सुखाकर कूट-पीस और छान लो। इस चूर्णको ४ माशे गुड़ और छै तोले घी मिलाकर खानेसे उन्माद रोग नाश हो जाता है। बलाबलअनुसार, मात्रा लेनेसे निश्चय ही सब तरहका उन्माद रोग आराम हो जाता है। .. (६) धतूरेके शोधे हुए बीज एकसे शुरू करके, रोज एक-एक बढ़ाओ और इक्कीसवें दिन इक्कीस बीज खाओ। पीछे, पहले दिन बीस, फिर उन्नीस, अठारह, सत्रह, इस तरह घटा-घटाकर एकपर आ जाओ। इस तरह इनके सेवन करनेसे कुत्ते का विष शान्त हो जाता है। ___ (७) धतूरेके शुद्ध किये हुए बीज पहले दिन दो खाओ, दूसरे दिन तीन, तीसरे दिन चार, चौथे दिन पाँच पाँचवें दिन छै, छठे दिन सात, सातवें दिन आठ, आठवें दिन नौ, नवें दिन दस और दसवें दिन ग्यारह खाओ। इस तरह करनेसे एक सालका पुराना फीलपाँव या श्लीपद रोग आराम हो जाता है।
(८) धतूरेके पाँच पत्तोंपर एक तोले कड़वा तेल लगा दो और पत्तोंको गरम करके फोड़ेपर बाँध दो। ऐसा करनेसे कोडेका दर्द मिट जायगा।
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