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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org E Xx श्रीदंड प्रकरण - परिशिष्टम् -: अ.... ल्प.... .... हु....त्व : दंडक पदोमां उतारखा योग्य २४ द्वारोमां जो के अल्पबहुत्व द्वार नथी, तो पण जाणवामां अति उपयोगी होवाथी अहीं अल्पबहुत्व द्वार' पण उताराय छे ( एटले क्या दंडकना जीवो अल्प अने क्या दंडकना जीवो तेथी अधिक छे ते कहेवाय छे. ) * पर्याप्त मनुष्यो सर्वथी अल्प छे. पर्याप्त मनुष्यथी बादर अनिकायना जीवो 'अधिक (अधिक एटले पूर्व संख्याथी असंख्यात गुण जीवो जाणवा.) * बादर अग्निकायथी वैमानिक देवो 'अधिक छे. * वैमानिक देवोथी नारको 'अधिक छे, * नारकोधी व्यंतर - देवो 'अधिक छे, * व्यंतर देवोथी ज्योतिषी देवो 'अधिक छे, * ज्योतिषी देवोथी चतुरिन्द्रिय जीवो 'अधिक छे. * चतुरिन्द्रिय जीवोथी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चो 'अधिक छे, [ 'अधिक एटले पूर्व संख्याथी विशेषाधिक (एटले संपूर्ण द्विगुण नहि ) जीवो जाणवा ] ॐ पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोथी द्वीन्द्रियजीव अधिक छे. * द्वीन्द्रिय जीवोथी त्रीन्द्रियजीव अधिक छे. * त्रीन्द्रिय जीवोथी पृथ्वीकायजीवो 'अधिक छे. * पृथ्वीकाय जीवोथी अप्कायजीवो For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020151
Book TitleChatvari Prakaranani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndrasenvijay Gani, Sinhsenvijay Gani
PublisherJain Granth Prakashak
Publication Year1986
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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