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॥३॥बीज चंद पर भुषण भुषीत, दीपे ललवट चंदाजी ॥ गरुड जक्ष नारी सुखकारी, निरवाणी सुख कंदाजी॥ बीज तणो तप करता भवीने, समकीत सानिध्य कारीजी ॥ धीरवीमल कवी शिष्य कहे सीख, संघना वीघन निवारी जी ॥४॥ इति ॥
॥ अथ पंचमीना स्तुति ॥ ॥ उत्तरदिशि अनुत्तरथी चवीया, सौरीपुर अवतरीयाजी ॥ समुद्र विजय नृप परणी धरणी, उयरे गुण गण तरीयाजी ॥ श्रुचि शित पंचमी पंच रूपधर, प्रमुदित शचिपचि आबेजी ॥ पंच वरण कलसे कनकाचल, शिखरे प्रभु न्हवरावे जी ॥१॥ पंच कल्याणक चोवीश जिनना, दश खेत्रे सय बारजी ॥ अविरति बार तजीने आदरे, पंच महाव्रत भारजी ॥ पंचाचारे सोभित विचरे, पंचानन उपमान जी ॥ पंच प्रमाद मतंगज भेदी, पाम्या पंचम ज्ञानजी॥ ॥२॥ सुत्र (१) नियुक्ति (२) टीका (३) चुरणी, (४) भाष्य (५) पंचांगी प्रमाणजी ॥ सांप्रत षट लखी गुणचालीश, सहस त्रणसय षष्टि मानजी ॥
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