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करती, शासन शोभ चढावेजी ॥ श्रद्धा संयुत जे व्रतधारी, विघन तास निवारे जी ॥ श्री शुभ वीरविजय प्रभु भगते, समरे नित्य सवारे जी॥४॥ इति॥
॥ श्री अजितनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ विश्वनायक लायक, जितशत्रु विजयानंद ॥ पयजग नित पणमे, देव अने दोविंद ॥ भाव लहिरी गहिरं। सव, मन धरीये अमंद ॥ श्री सूरत सहिरे, वंदो अजित जिणंद ॥ १ ॥ आठ प्रातोहारज, अतिशय वलि चौतीस ॥ दिल रंजण देसन, तेहना गुण पेंतीस ॥अगणित रिद्ध धारी, आचारीमा ईस ॥ एह गुणना धारक, वांदु जिन चोवीश ॥ २ ॥ शुद्ध अरथ अनोपम, जिन नाषित सिद्धांत ॥ स्याद्वाद नयादिक, हेतु युक्त नवि भ्रांत ॥ पाप करदम पाणी, सदगतिनी सहिनाणी ॥ सुणिये नित भविका, आगम केरी वाणी ॥ ३ ॥ सासणनी साची, देवी सानिध्य कारी ॥ दुःख कष्ट निवारण, सेविजे सुखकारी ॥ साचे मन समरे, ते सुख लाभ अपारी ॥ जिनलाभ पयंपे, होज्यो जय जयकारी ॥ ४ ॥ इति ॥
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