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Achar
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चंद्र च्यवन संभवनाण सुणीजे, त्रिहु चोवीसी इम जाणीजे, सहु जिनवर प्रणमीजे ॥२॥ पंच प्रकारे आगम साखे, जिनवर चंद सुधा रस चाखे, भावजन हैयडे राखे ॥ पंचज्ञान तणो विधि दाखे, पंचमी गतिनो मारग भाखे, जेहथी सी दुख नासे ॥३॥ जिनभक्ति प्रज्ञप्ति देवी, धर्मनाथ जिनपद प्रणमेवि, किन्नर सुर संसेवि ॥ बोधिबीज शुभ दष्टि लहेवि, सदामति देवी नयविमल, दुश्मन विघ्न हरेवि ॥ ४ ॥
॥ अथ छट्ठनी स्तुती ॥ ॥ शंखेसर पासजी पुजीये ॥ ए देशी ॥ ॥श्री नेमि जिणेसर लहे दीक्षा, छट्ठ दिवसे सुविधि चरण शिदा ॥ एककाजाल एक शशिकर गोरा, नित समरु जिम जलधर मोरा ॥१॥ पद्मप्रभु शीतल वीरजीना, श्रेयांस जिणंद लहे तिहां चवना ॥ विमल सुपासज्ञान जेम होइ, कल्याणक संप्रति जिन जोइ ॥२॥ जिहां जयणा खट विधकाय तणी, खट व्रत संप्रति मुनिराय तणी ॥ जे आगम माहे जाणीये, ते अनोपम चितमां आणीए ॥३॥
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