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Achar
लिये बराबरीके मित्र, अति सुरसाला ॥ रसरंगे आवे जदुपति आयुध शाला ॥ कहे मित्र सुणो प्रभु ए छे शंख उदारा, नहि गिरधर पाखें और बजावन हारा ॥ करकमलें लेकर शंख बजाओ भारी ॥ प्रभु० ॥१॥ सुणी शंखशब्दकी धुनि अति विकराल, खलभलिया शेषने फणी सप्तपाताल ॥ चित्त चमका मनमें भवनपतिका इश. थरहर थरक्यां त्यां व्यंतर पति बत्रीश। मूकी निजठामने नासंती सुरनारी ॥ प्रभु० ॥२॥ शागर गडया गिरिवर ने डंगर डोल्या मोटा, त्रोडी बंधनने नाठा गजरथ घोडा ॥ उछलियां सायर नीर चम्यां कल्लोले, भांगी तरुवरनी डाल थयां डम डोले ॥ त्रुटा वर मोतिहार, झबुकी नारी ॥ प्रभु० ॥३॥ शशी सूरज तारा त्रैमानिकना स्वामी ॥ सह करे प्रसंसा अहो प्रभ अंतर जामी ॥ प्रभ चक फेरवी. कियो धनुष टंकारे ॥ गिरधरनी गदा लेइ करमा नेम कुमारे, ॥ कहे माणक मुनि वर चिंता थइ मुरारी ॥ प्रभु०॥४॥
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