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४१० दीवोरे जब दुरे थयो रे, तव किधि देवे दीवानी श्रेणिरे ॥ तिमरे चिहुं वरणे दीवा किधलारे, दिवाली कहिये छे कारण तेणरे ॥ वी० ॥ ८॥ आंसु परिपूरण नयण आखंडलो रे, मूकि चंदननी चेहमां अंगरे॥ दिधो देवे दहन सघले मिलिजी रे, हा धिग धिग संसार विरंगरे॥वी०॥९॥
॥ ढाल आठभी ॥ राग विराग ॥ ॥वंदेसु वेगे जइ वीरो, इम गौतम गहगहता ॥ मारगे आवतां सांजलिडं, वीर मुगति माहे पोहतारे ॥ जिनजी तुं निसनेही मोटो, अविहम प्रेम हतो तुज उपरे, ते तें किधो खोटोरे ॥ जीनजी० ॥ ॥१॥ है है वीर कर्यो अणघटतो, मुज मोकलिओ गामे ॥ अंतकाले बेठां तुज पासे, हूं स्ये नावत काम रे। जी० २ ॥ चौद सहस मुज सरिखा ताहरे, तुज सरिखो मुज तुंहि ॥ विश्वासी वीरे छेतरीओ, ते इया अवगुण मुहिरे ॥ जी० ॥३॥ को केहने छेहमे नवि वलगे, जो मिलतो होए सबलो ॥ मिलतास्युं जेणे चित्त चोयों, ते तिणे को निबलो रे ॥ जी०॥४॥
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