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Achar
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॥ ढाल ३ जी ॥ ललनांनी देशी ॥ ॥निज पुरव भव सांगली, गुण मंजरीने त्यांह ॥ ललनां ॥ जाति स्मरण उपन्युं, गुरुनें कह्यों उच्छांदि ॥ ललना ॥ भविका ज्ञान अभ्यासीयें ॥१॥ ए आं. कणी ॥ ज्ञान भलो गुरुजी तणो, गुणमंजरी कहे एम ॥ ल०॥ शेठ पूछे गुरुने तिहां, रोग जाये कहो केम ॥ल ॥०॥२॥ गुरु कहें एह विधि सांभलो, जे कह्यो शास्त्र मंझार ॥ल०॥ कार्तिक शुदि पंचमी दीने, पुस्तक आगल सार ॥ ल०॥ ज०॥३॥ दीवो पंच दीवट तणो, कीजीयें स्वस्तीक खास ।। ल०॥ नमो नाणस्स गणणं गणो, चोवीहार उपवास ॥ल. ॥ भ० ॥ ४॥ पडिकमणां दोय कीजीये, देववंदन त्रण वार ॥ ल० ॥ पंच बरस पंच मासनी, कीजीयें पंचमी सार ॥ ल०॥ भ०॥५॥ हवे उजमणुं पारणे, सांभलो विधिनो प्रपंच ॥ ल०॥ पुस्तक आगल मकवां, सघला वाना पंच ॥ ल०॥भ० ॥ ६ ॥ पुस्तक ठवणी पुंजणी, नवकार वाली प्रत ॥ल०॥ लेखण खमीया डाबला, पाठी कवली युगत ॥ ल० ॥ भ० ॥७॥
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